हिंदू समाज को एकजुट करना है संघ का मुख्य उ्ददेश्य: मोहन भागवत

उत्तराखंड। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ चालक मोहन भागवत ने कहा कि जाति-पाति को छोड़ हिंदू समाज को एकजुट करना संघ का मुख्य उ्ददेश्य है। वही 2025 को संघ की स्थापना के 100 साल पूरे हो रहे हैं। ऐसे में संघ के स्वयं सेवक चार सालों में हिंदू समाज को एकजुट करने के लक्ष्य में जुट जाएं और घर-घर पहुंचकर लोगों को संघ के साथ जोड़ा जाए। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज एकजुट होगा तो भारत मजबूत होगा और कोई भी विदेशी ताकत हमारे देश का नुकसान नहीं कर पाएगी। संघ चालक मोहन भागवत ने संघ के प्रांत मुख्यालय केशव भवन से वर्चुअल माध्यम से रविवार को जम्मू कश्मीर प्रांत के 989 स्थानों पर आनलाइन जुड़े स्वयं सेवको को संबोधित किया। करीब 40 मिनट के संबोधन में संघ चालक मोहन भागवत ने कहा कि 2025 में संघ की स्थापना के 100 साल पूरे होंगे। हमारा संगठन 96 वर्ष पुराना है। आयु में पुराना होने पर भी संघ स्वास्थ्य में, प्रवृति में और शक्ति के रूप में पुराना नहीं हैं। संघ को हमने ऐसे ही बनाए रखना है। उन्होंने कहा कि जो काम हम नौ दशक से कर रहे हैं, हो सकता है कि हमारा ध्यान हट जाए, क्योंकि जब शरीर को काम करने की आदत लग जाती है तो सोचने की आवश्यकता नहीं रहती। जब सोचना बंद होता है तो व्यक्ति आदत से काम करता रहता है, तो गलती होना संभव है। इसलिए हम सभी को सावधान रहना चाहिए। सर संघ चालक ने संगठन में शक्ति का उदाहरण देते हुए कहा कि शक्ति थोड़ी भी हो, उसकी पहचान होती है। ऐसा अनुभव संघ के प्रारंभिक दौर में डॉ. हेडगेवार के समय में नागपुर में हुआ था। अच्छी शक्ति को लोग पहचानते हैं और इससे डरते भी हैं। उन्होंने कहा कि प्रांरभ में संघ का अच्छा कार्य बढ़ने से भी स्वार्थी लोगों को डर लगता था, उस डर के मारे बड़ा विरोध हुआ। वर्ष 2000 तक विरोध चलता रहा। आज भी चल रहा है परंतु 2000 तक विरोध का लोगों पर प्रभाव दिखता था, लेकिन आज नहीं। हमें गफलत में नहीं आकर सतर्क रहना है। यशस्वी होते होते अगर सावधानी हट गई तो पूरा यश अपयश में बदल जाता है। उन्होंने कहा कि स्वयं सेवकों को ध्यान में रखना होगा कि हम संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन लेकर चल रहे हैं। भारत को विश्व गुरू बना सकते है हिंदू समाज। भारत विश्व के हर क्षेत्र में सबसे आगे हो और हम संपूर्ण विश्व का कल्याण करने वाला जीवन जीने वालों में भी सबसे आगे रहे, ऐसा भारत वर्ष हमें खड़ा करना है। अभी काम शुरू हुआ है। खत्म नहीं हुआ। इसलिए धैर्यपूवर्क सावधानी में काम करने की आवश्यकता अधिक है। उन्होंने कहा कि इस सबके लिए हमें शाखा में नित्य नियमित जाकर वहां के संस्कारों को सीखते रहना चाहिए और जो संस्कार सीखें उसकी आदत डालनी चाहिए। संस्कार रहता है, तो आदत रहती है, इसलिए शाखा में उत्कर्ष्ट कार्य करना आवश्यक है। शाखा में नित्य जाने के अलावा और तीन काम भी स्वयं सेवकों के लिए हैं। प्रतिदिन शाखा में जाना, शाखा में जो कार्यक्रम हैं, उसे मन लगाकर करना और संघ के दायित्व को प्रमाणिकता के साथ निभाना।

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