हाइड्रोपोनिक खेती को करियर बना रहे है युवा…

उत्तराखंड। खेती-बाड़ी के झंझटों से लोगों का मोहभंग होना लाजमी है, लेकिन हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती के प्रति युवा पीढ़ी का रुझान बढ़ा है। देहरादून के झाझरा में हाइड्रोपोनिक तकनीक अपना कर खेती-बाड़ी में करियर तलाशने वाले अनिकेत शुक्ला और प्रियांश जैन के इस स्टार्टअप से अन्य युवा भी प्रेरणा ले रहे हैं। झाझरा में अपना फॉर्म स्थापित करने वाले अनिकेत शुक्ला और प्रियांश जैन मूल रूप से यूपी से हैं। जलवायु के हिसाब से दोनों ने देहरादून से स्टार्टअप की ठानी। कंप्यूटर इंजीनियर के छात्र अनिकेत और मैनेजमेंट के छात्र प्रियांश ने वर्ष 2020 में झाझरा में स्टार्टअप शुरू किया। बतौर अनिकेत हमारी आज की पीढ़ी की सॉयल बेस्ड फार्मिंग में दिलचस्पी कम ही होती है। क्योंकि इसमें समय और मेहनत बहुत ज्यादा है। हाइड्रोपोनिक तकनीक में ये सब दिक्कतें नहीं हैं। हाइड्रोपोनिक कंट्रोल फार्मिंग है। आपका फॉर्म कहीं भी हो आप उसे कहीं से भी कंट्रोल कर सकते हैं। सिस्टम को नियंत्रित करने के लिए खेतों में उपयोग किए जाने वाले सेंसर को मोबाइल एप्लीकेशन से भी जोड़ा जा सकता है। अनिकेत और प्रियांश ने कहा कि रिस्क लेना है तो अपने गांव में लीजिए। बाहर जाकर भी हमें कोई काम करने पर शुरू में रिस्क लेना ही पड़ता है। फॉर्म के साथ ही दोनों युवा सप्ताह में 20 युवाओं को हाइड्रोपोनिक तकनीकी का प्रशिक्षण देते हैं। क्या है हाइड्रोपोनिक तकनीकी:- खेती की इस आधुनिक तकनीकी में मिट्टी के बिना जलवायु को नियंत्रित करके खेती की जाती है। हाइड्रोपोनिक खेती में केवल पानी में या पानी के साथ बालू एवं कंकड़ में पौधे उगाए जाते हैं। हाइड्रोपोनिक तकनीक में फास्फोरस, नाइट्रोजन, मैग्निशियम, कैल्शियम, पोटाश, जिंक, सल्फर, आयरन आदि कई पोषक तत्व एवं खनिज पदार्थों को एक निश्चित मात्रा में मिलाकर घोल तैयार किया जाता है। इस घोल को निर्धारित किए गए समय के अंतराल पर पानी में मिलाया जाता है। जिससे पौधों को पोषक तत्व मिलते हैं। हाइड्रोपोनिक खेती में पाइप का प्रयोग करके पौधों को उगाया जाता है। पाइप में कई छेद बने रहते हैं, जिसमें पौधे लगाए जाते हैं। पौधों की जड़ें पाइप के अंदर पोषक तत्वों से भरे जल में डूबी रहती हैं। उगाई जा सकती हैं ये फसलें:- इस तकनीकी के माध्यम से छोटे पौधों वाली फसलों की खेती की जा सकती है। इनमें गाजर, शलजम, ककड़ी, मूली, आलू, शिमला मिर्च, मटर, मिर्च, स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी, तरबूज, खरबूजा, अनानास, अजवाइन, तुलसी, पालक, धनिया, शिमला मिर्च, ब्रोकोली, पुदीना, स्ट्रॉबेरी, ब्लूबेरी, टमाटर, खीरा, जड़ी बूटी आदि शामिल हैं। हाइड्रोपोनिक खेती के फायदे:- सही तरीके से हाइड्रोपोनिक खेती की जाए तो करीब 90 प्रतिशत तक पानी की बचत की जा सकती है। परंपरागत खेती की तुलना में इस विधि से खेती करने पर कम जगह में अधिक पौधे उगाए जा सकते हैं। पोषक तत्व बर्बाद नहीं होते। इस्तेमाल किए जाने वाले पोषक तत्व पौधों को आसानी से मिल जाते हैं। इस तकनीक में मौसम, जानवरों या किसी अन्य प्रकार के बाहरी, जैविक एवं अजैविक कारणों से पौधे प्रभावित नहीं होते। कई युवाओं ने अपनाई खेती:- अनिकेत और प्रियांशु ने बताया कि इस तकनीक के कारण युवा खेती से जुड़ रहे हैं। बताया कि हमारे 10 में से आठ क्लाइंट ऐसे हैं जो 25 से कम उम्र के हैं। बतौर अनिकेत खेती का मतलब दिमाग में सबसे पहला ख्याल आता है कि बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। पूरा समय लगाना, लेकिन हाइड्रोपोनिक तकनीकी में ऐसा नहीं है। आपके कपड़े तक गंदे नहीं होते। एक साफ वातावरण होता है। हाइड्रोपोनिक तकनीकी टेक्नोलॉजी और फार्मिंग का मिश्रण है।

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