आसान नहीं है अभी श्रीलंका का संकट से उबरना

नई दिल्ली। भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका इन दिनों अभूतपूर्व आर्थिक संकट और राजनीतिक उथल-पुथल की हालात का सामना कर रहा है। इस देश को 1948 में आजादी मिली थी इसके बाद यह अब तकका सबसे खराब दौर है। करीब 2.2 करोड़ की  आबादी वाला यह देश सशक्त जनविद्रोह से बुरी तरह प्रभावित है।

हालात ऐेसी बनी कि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे भाग गये और आक्रोशित जनता ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया। कोलम्बो में प्रधान मंत्री रनिल विक्रम सिंघे का घर आग के हवाले कर दिया गया है। हर पल वहां हालात बदतर हो रहे हैं। राष्ट्रपति गोटबाया ने इस्तीफा दे दिया है जबकि प्रधान मंत्री रनिल विक्रम सिंघे ने भी इस्तीफे की पेशकश की है।

सेना प्रमुख ने जनता से शांति व्यवस्था बनाए रखने का आग्रह किया है लेकिन जनाक्रोश और भी बढ़ता जा रहा है। श्रीलंका की अस्थिरता भारत के लिए अहितकर है क्योंकि चीन की भी श्रीलंका पर बुरी नजर है। इसीलिए भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि भारत श्रीलंका के साथ खड़ा है। आर्थिक संकट से उबरने के लिए भारत हर संभव सहायता देने को तैयार है जबकि विश्व के अन्य देश श्रीलंका की सहायता के लिए आगे नहीं आ रहे हैं।

भारत ने बड़ा दिल दिखाते हुए आश्वस्त किया है। श्रीलंका की मौजूदा स्थिति के लिए सरकार और उसकी नीतियां मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। प्राकृतिक आपदाओं से कृषि पूरी तरह चौपट हो गई है। कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था खराब हो गयी और सरकार महंगाई नहीं रोक पाई। बम विस्फोटों के कारण जहां पर्यटन उद्योग ध्वस्त हो गया वहीं राजपक्षे परिवार की लोकलुभावन नीतियों ने आर्थिक स्थिति को रसातल पर पहुंचा दिया। श्रीलंका आत्मनिर्भर बनने कीबजाय पराश्रित होता चला गया। कर्ज का बोझ काफी बढ़ गया। विशेषज्ञों का मानना है कि श्रीलंका का संकट से उबर पाना अभी आसान नहीं है। कब तक स्थिति सुधरेगी यह कहना मुश्किल है। 

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