जानें क्या‍ है डिप्रेशन के कारण और लक्षण?

हेल्‍थ। स्वस्थ तन में स्वस्थ मन बसता है, एक पुरानी कहावत है। लेकिन क्या आपने इस बात पर गौर किया है कि मन स्वस्थ हो तो तन को भी स्वस्थ रहने में मदद मिलती है। यानी ये दोनों चीजें एक-दूसरे से कनेक्‍ट हैं। जबकि अक्सर यह होता है कि मन की सेहत को लेकर या तो हम उदासीन रवैया अपना लेते हैं या फिर इसे शर्मिंदगी बनाकर छुपाने लगते हैं। जिस तरह बुखार आने पर दवाई लेकर समस्या पर काबू पाया जाता है, उसी तरह मन के बीमार होने पर भी इलाज लेना बहुत जरूरी है। हम भारतीयों में खासकर मानसिक स्थितियों को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां हैं।

किसी भी दिमागी स्थिति को हम सीधे पागलपन का खिताब दे देते हैं, अंधविश्वास के चलते झाड़-फूंक करवा लेते हैं लेकिन साइकेट्रिस्‍ट या काउंसलर के पास जाने से डरते हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि दिमागी समस्याओं को हम बीमारी मानते ही नहीं। इन्हें वहम मानकर चलते हैं। डिप्रेशन जैसी स्थितियां जो सही इलाज से बिल्कुल सामान्य हो सकती हैं, वे बिगड़ कर गम्भीर स्तर तक पहुंच जाती हैं। देश के बड़े भाग में आज भी साइकेट्रिस्ट या काउंसलर के पास जाना क्या उनका नाम लेना भी अच्छा नहीं माना जाता। डिप्रेशन की स्थिति में भी ऐसा ही होता है।

डिप्रेशन का इलाज

डिप्रेशन की समस्या नई नहीं है। लेकिन इस समस्या को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। लोगों को लगता है इसे तूल देने की क्या जरूरत, बस इसकी तरफ से ध्यान हटा दो, ये ठीक हो जायेगा। क्योंकि डिप्रेशन विप्रेशन कुछ नहीं होता। रिसर्च यह साबित कर चुकी हैं कि यदि डिप्रेशन की स्थिति को समझते ही मरीज को इलाज मिल जाये तो आत्महत्या जैसी घटनाओं को बड़े पैमाने पर रोका जा सकता है। लेकिन होता अक्सर इसका उल्टा है। वर्तमान में कुछ प्रतिशत लोग इस समस्या को लेकर जागरूक तो हुए हैं लेकिन वे भी कई सारी भ्रांतियों में जकड़े हुए हैं। इसलिए जरूरी है कि सही जानकारी रखें और असमंजस में न पड़ें। इन कुछ बातों का ध्यान रखें।

डिप्रेशन कल्पना नहीं

असल में यह सच्चाई से बचने का बहाना भर है। जबकि सच यह है कि डॉक्टर जब ब्रेन की स्कैनिंग करते हैं तो डिप्रेशन के मरीजों में नर्व्स तक सिग्नल्स जाने वाले ब्रेन के कैमिकल्स असंतुलित दिखाई देते हैं। इसलिए डिप्रेशन को कल्पना मानकर खारिज न करें।

जबरन न थोपें कोई एक्टिविटी 

व्यस्तता कई बार डिप्रेशन के मामले में मददगार साबित हो सकती है। खासकर किसी रचनात्मक कार्य में व्यस्तता। लेकिन आवश्‍यकता से अधिक व्यस्तता भी मुश्किल खड़ी कर सकती है। किसी सामाजिक कार्य या कला की किसी गतिविधि से जुड़ जाना डिप्रेशन के शुरुआती या माइल्ड केसेस में सहायक हो सकती है लेकिन क्रॉनिक डिप्रेशन में हो सकता है कि डॉक्टर कुछ समय व्यस्त न रहने की सलाह भी दें। कई बार खुद को बहुत काम मे झोंक लेना भी क्लीनिकल डिप्रेशन का लक्षण हो सकता है। ऐसे में मरीज के और अधिक अकेले और हताश हो जाने की आशंका भी बढ़ सकती है। विशेषकर डिप्रेशन से ग्रसित पुरुषों में यह एक आम लक्षण है क्योंकि वे अपनी तकलीफ आसानी से कह और बांट भी नहीं पाते।

किसी को भी हो सकता है डिप्रेशन

लोग आमतौर पर एक धारणा बनाकर चलते हैं कि डिप्रेशन तो उसी को होगा जो किसी दुख से गुजरा हो लेकिन ऐसा नहीं है। कई बार सारे साधन और खुशियां होते हुए भी व्यक्ति किसी भावनात्मक उथल-पुथल से गुजर सकता है। हम आये दिन अखबारों में किसी सेलिब्रिटी या अमीर व्यक्ति के बारे में पढ़ते हैं कि उन्होंने डिप्रेशन की वजह से जान दे दी। डिप्रेशन ऐसी स्थिति है जो किसी भी उम्र या वर्ग के महिला-पुरुष किसी में भी हो सकती है। यहां तक कि बच्चों में भी। यही नहीं यह कई बार अनुवांशिक भी हो सकता है।

अलग हो सकते हैं डिप्रेशन के लक्षण-

डिप्रेशन के लक्षण भी सब में समान हों जरूरी नहीं। केवल दुखी दिखना, रोना, हताश दिखना ही लक्षण नहीं हैं। चिड़चिड़ाहट, गुस्सा, खीज, एकाग्रता का न होना, बहुत ज्यादा खाने लगना या खाना बंद कर देना, अकेले रहना पसंद करना या बेवजह उत्साह दिखाना या एकदम चुप्पी साध लेना भी डिप्रेशन का लक्षण हो सकता है। हो सकता है कि जो व्यक्ति आपको ऊपर से बिल्कुल सामान्य लग रहा हो वह अंदर से बहुत उथल-पुथल से गुजर रहा हो।

सहयोग करें, साथ दें –

डिप्रेशन से बाहर आने के लिए मरीज का इलाज तो जरूरी है ही। यह भी आवश्‍यक है कि उसे अपने आस पास स्वस्थ और सकारात्मक माहौल मिले। मरीज की स्थिति को समझने वाले दोस्तों, परिचितों या परिवार के साथ समय गुजारना, बातचीत करना, नियमित एक्सरसाइज और पोषक खान-पान जारी रखना, काउंसिलिंग सेशंस को नियमित रखना और पूरा इलाज लेना, साथ ही खुद पर विश्वास जगाना, इस समस्या से बाहर आने में चमत्कारी साबित हो सकते हैं। इसलिए जब भी किसी व्यक्ति में कोई लक्षण दिखे तो उसकी ओर मदद का हाथ बढ़ाएं, क्या पता आप एक अनमोल जीवन बचाने में योगदान दे सकें।

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