जानिए क्या है पंचतत्व का महत्व…

वास्‍तु। समरांगण सूत्रधार के अनुसार वास्तु सम्मत भवन में निवास करना मनुष्य के लिए सर्वसुख, समृद्धि, सद्बुद्धि एवं संतति प्रदायक होता है। वास्तु नियमों के अनुसार इस सृष्टि की रचना पंचतत्वों से मिलकर हुई है-आकाश, पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि। हालांकि इन सबका स्वतंत्र अस्तित्व है, किन्तु जब इन्हें एकत्रित किया जाता है, तो इनकी सामूहिक ऊर्जा का प्रभाव लाभप्रद होता है। किसी भी निवास स्थल पर पंचतत्वों की संतुलित उपस्थिति अनिवार्य है, इनसे घर प्रकंपित होता है और निरंतर सकारात्मक ऊर्जाओं का प्रवाह बना रहता है। यदि भवन का प्रारूप इन पंच महाभूतों का संतुलन रखते हुए बनाया जाए तो उसमें निवास करने वालों के शरीर की आंतरिक ऊर्जाएं उनसे सांमजस्य स्थापित करके सामान्य बनी रहेंगी और वे स्वस्थ्य व संपन्न रहेंगे। आकाश:- आकाश तत्व के अधिपति ग्रह गुरु व देवता ब्रह्मा हैं। यह तत्व व्यक्ति को सुनने की शक्ति प्रदान करता है। भवन का उत्तर-पूर्व कोण और ब्रह्मस्थान आकाश तत्व से प्रशासित होता है अतः इस क्षेत्र को स्वच्छ, खुला और हल्का रखें ताकि इस क्षेत्र से आने वाली लाभप्रद सत्व ऊर्जाएं भवन में अवाधरूप से प्रवेश कर सकें। यह क्षेत्र शांतिपाठ,आत्मनिरीक्षण,पूजन कक्ष व योग के लिए सर्वोत्तम है। बौद्धिक विकास, मानसिक शांति या आध्यात्मिक समृद्धि के लिए यह दिशा स्वस्थ्य रखनी चाहिए। पृथ्वी:- पृथ्वी ऐसा आधार है, जिस पर अन्य तीन तत्व जल, अग्नि व वायु सक्रिय होते हैं। पृथ्वी से मानव को सूंघने की क्षमता मिलती है। घर के दक्षिण-पश्चिम(नैऋत्य) क्षेत्र पर पृथ्वी तत्व का आधिपत्य होने से इस स्थान पर भारी-भरकम निर्माण शुभ रहता हैं। इस दिशा में शयनकक्ष का होना लाभप्रद होता है। वैसे भी पृथ्वी का चारित्रिक गुण सहनशीलता है अतएव यहाँ की दीवारें अपेक्षाकृत मोटी और भारी हों तो सुखद परिणाम देती हैं। भारी वस्तुएं भी इस दिशा में रखनी चाहिए। इस दिशा में पृथ्वी तत्व कमज़ोर होने से पारिवारिक रिश्तों में असुरक्षा की भावना आती हैं। वास्तुशास्त्र के हिसाब से दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम दिशा को विसर्जन के लिए उत्तम माना गया है।अतः इस दिशा में टॉयलेट का निर्माण करना वास्तु की दृष्टि में उचित है। जल:- घर की उत्तर एवं उत्तर-पूर्व दिशा जल तत्व से संबंध रखती है। हैंडपंप, भूमिगत पानी की टंकी, दर्पण अथवा पारदर्शी कांच जल तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं।बरसाती पानी व अन्य साफ़ जल का प्रवाह उत्तर-पूर्व में होना चाहिए। स्नानघर के लिए पूर्व दिशा अच्छी मानी गई है तथा सेप्टिक टैंक के लिए उत्तर-पश्चिम दिशा का चुनाव लाभप्रद रहता है। जल तत्व कमजोर होने से परिवार में कलह की आशंका बनी रहती हैं। अग्नि:- सूर्य तथा मंगल अग्नि प्रधान ग्रह होने से अग्नि तत्व के स्वामी माने गए हैं। इमारत के दक्षिण-पूर्व कोण(आग्नेय)में अग्नि तत्व का आधिपत्य होता है। इसलिए भवन में अग्नि से सम्बंधित समस्त कार्य-रसोईघर, बिजली का मीटर आदि को आग्नेय कोण में ही स्थापित करना चाहिए। भवन में अग्नि तत्व के संतुलित होने से आर्थिक सुरक्षा की भावना बनी रहती है। वायु:- भवन की उत्तर-पश्चिम(वायव्य) दिशा में वायु तत्व की प्रधानता होती है। वायु तत्व वाली इस दिशा के स्वामी वरुण देव है। वास्तु में इस दिशा को संवाद की दिशा भी माना गया है अतः भवन में इस तत्व के कमजोर होने से सामाजिक सम्बन्ध अच्छे नहीं रहते व मान सम्मान में भी कमी आती है। उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए भवन के पूर्व, पूर्वोत्तर,उत्तर और पश्चिम दिशाओं में वायु सेवन का स्थान रखना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *