जानें क्‍या है पोस्‍ट ट्रमैटिक स्‍ट्रेस डिसऑर्डर?

हेल्‍थ। जिंदगी में हर किसी को कभी न कभी किसी अप्रिय घटना का सामना करना पड़ता है। आर्थिक नुकसान, किसी प्रिय व्‍यक्ति की मौत, अपराध, किसी से बिछड़ना या दुर्घटना को भुला पाना आसान नहीं होता। कुछ लोग इन घटनाओं को भुलाकर आगे बढ़ जाते हैं वहीं कुछ पुरानी यादों और विचारों में खोए रहते हैं।  जो लोग अप्रिय घटनाओं को समय के साथ भुला नहीं पाते वे पोस्‍ट ट्रमैटिक स्‍ट्रेस डिसऑर्डर का शिकार हो जाते हैं।

अध्‍ययनों से पता चलता है कि दुनियाभर में 7 से 8 प्रतिशत लोग इस डिसऑर्डर का शिकार हैं। पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं इस समस्‍या का सामना अधिक करती हैं। इस डिसऑर्डर के चलते व्‍यक्ति समय के साथ उभरने की बजाय अधिक चिंति‍त और डरा हुआ महसूस करने लगता है। कई लोग इस डिसऑर्डर के लक्षणों को आसानी से पहचान नहीं पाते जिस वजह से इलाज में देरी हो जाती है। चलिए जानते हैं पोस्‍ट ट्रमैटिक स्‍ट्रेस डिसऑर्डर के लक्षण और इलाज के बारे में-

क्‍या है पोस्‍ट ट्रमैटिक स्‍ट्रेस डिसऑर्डर:-

पोस्‍ट ट्रमैटिक स्‍ट्रेस डिसऑर्डर होना सामान्‍य है लेकिन इससे उभरने में काफी समय लग सकता है। पोस्‍ट ट्रमैटिक स्‍ट्रेस डिसऑर्डर उन लोगों को अधिक होता है जो पहले से तनाव, एंजाइटी और डिप्रेशन जैसी समस्‍याओं का सामना कर रहे होते हैं।

पोस्‍ट ट्रमैटिक स्‍ट्रेस डिसऑर्डर का संबंध किसी दुखद घटना से होता है जिसे भुला पाना मुश्किल होता है। इस दौरान कई तरह के भावनात्‍मक बदलाव आते हैं जिसे ब्रेन में मौजूद हिप्‍पोकैंपस कंट्रोल करने की कोशिश करता है। जब हिप्‍पोकैंपस इमोशंस को कंट्रोल करने में असफल हो जाता है तब व्‍यक्ति पोस्‍ट ट्रमैटिक स्‍ट्रेस डिसऑर्डर का शिकार हो जाता है। ये डिसऑर्डर महिलाओं को आसानी से हो सकता है क्योंकि वे पुरुष की अपेक्षा अधिक सेंसिटिव और इमोशनल होती हैं।

एक्‍सपोजर थेरेपी:-

किसी घटना के बारे में बार-बार बात करने और उसे याद दिलाने से व्‍यक्ति उनके बारे में सोचना कम कर देता है। ये थेरेपी पेशेंट के विचारों और भावनाओं को कंट्रोल करने में मदद करती है। इस थेरेपी का प्रयोग काफी सावधानी से किया जाना चाहिए वरना लक्षण और अधिक बिगड़ सकते हैं।

एक्‍सपेरिमेंटल थेरेपी:-

इस थेरेपी का प्रयोग तब किया जाता है जब व्‍यक्ति इस थेरेपी को सहने की क्षमता रखता हो। कई बार इमोशनल वीक होने की वजह से ये थेरेपी करना मुश्किल हो जाता है। इस थेरेपी के माध्‍यम से घटना को पूरी तरह से व्‍यक्ति के सा‍मने रि-क्रिएट किया जाता है। इससे पेशेंट को घटना के बारे में बात करने की हिम्‍मत मिलती है।

पोस्‍ट ट्रमैटिक स्‍ट्रेस डिसऑर्डर के लक्षण:-
–  बुरे सपने आना
–  फ्लैशबैक में जीना
–  डरावने विचार
–  सोने में कठिनाई
–  गुस्‍सा या चिड़चिड़ापन
–  तनाव और बेचैनी महसूस करना
–  दूसरों से दूरी बनाना
–  डिप्रेशन
–  मानसिक परेशानी
–  एकाग्रता की कमी
–  सिर दर्द
–  चेस्‍ट पेन
–  अधिक पसीना आना

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