चंद्रमा और मंगल से जुड़े मिशन पर स्थानीय संसाधनों का प्रयोग संभव करने में जुटे वैज्ञानिक
नई दिल्ली। भविष्य में चंद्रमा और मंगल से जुड़े मिशन की योजना बनाने वालों को वहां के संसाधनों से खाद्य पदार्थ, पानी, निर्माण सामग्री और दूसरे महत्वपूर्ण तत्व जुटाने के उपाय खोजने होंगे। ऐसे किसी मिशन की सफलता बहुत कुछ वहां की बर्फ, सतह पर बिखरी धूल और अन्य तत्वों के उपयोग की क्षमता हासिल करने पर निर्भर करेगी। चंद्रमा पर आर्टेमिस मिशन की तैयारी में नासा के योजनाकारों का मुख्य फोकस चंद्रमा की सतह पर बिखरी चट्टानों और धूल में कैद आक्सीजन को मुक्त करना है। इस धूल को रिगोलिथ कहा जाता है। वर्तमान अनुमानों के अनुसार चंद्रमा की धूल की दस मीटर चौड़ी ऊपरी पट्टी में तत्व रूप में मौजूद आक्सीजन से निकलने वाली मालिक्युलर आक्सीजन (ओ2) एक लाख वर्ष तक पृथ्वी के हर व्यक्ति के लिए पर्याप्त होगी। स्पष्ट है कि इतनी आक्सीजन चंद्रमा पर मानव बस्ती की आवश्यकता से कहीं अधिक है। चंद्रमा के वायुमंडल में आक्सीजन तत्व रूप में मौजूद है, लेकिन यह वायुमंडल बहुत पतला है। उसकी सतह पर बिखरी चट्टानों और बारीक धूल में समुचित मात्र में आक्सीजन मौजूद है। यह धूल चंद्रमा की सतह पर अरबों वर्ष तक उल्कापिंडों और धूमकेतुओं के निरंतर प्रहार का परिणाम है। चंद्रमा की धूल में 45 प्रतिशत आक्सीजन है, मगर यह एल्युमीनियम, लोहे, मैग्नीशियम और सिलिका के खनिजों में कैद है। इन खनिजों की संरचना बहुत कुछ पृथ्वी पर उपलब्ध खनिजों से मिलती है। शायद इसी कारण अवधारणा बनी कि अरबों वर्ष पहले पृथ्वी और चंद्रमा एक साथ अस्तित्व में आए थे। चंद्रमा की धूल से आक्सीजन निकालने के लिए काफी ऊर्जा चाहिए। पृथ्वी पर यह प्रक्रिया इलेक्ट्रोलिसिस कहलाती है। मुख्य रूप से धातु निर्माण के लिए इस प्रक्रिया का उपयोग होता है। इसमें आक्सीजन को खनिजों से अलग करने के लिए बिजली का करेंट प्रवाहित किया जाता है। इस प्रक्रिया में सह-उत्पाद के रूप में आक्सीजन का उत्पादन होता है, लेकिन चंद्रमा पर आक्सीजन का उत्पादन मुख्य उत्पाद के रूप में होगा और उपयोगी सह-उत्पाद के रूप में खनिज का उत्पादन होगा। नासा की योजना 2030 के बाद मंगल पर मानव को उतारने की है, लेकिन वहां से अंतरिक्ष यात्रियों की वापसी खर्चीली होगी। इस प्रक्रिया में राकेटों को ऊर्जा देने के लिए वहां 30 टन मीथेन और तरल आक्सीजन भेजनी पड़ेगी। इस पर अमेरिकी शोधकर्ताओं ने ऐसा तरीका सुझाया है, जो एक खास बैक्टीरिया विकसित करने के लिए मंगल के संसाधनों का उपयोग करता है। इस बैक्टीरिया को ईंधन में परिवर्तित किया जा सकता है। मंगल की सतह पर विशाल फोटोबायोरिएक्टर निर्मित किए जा सकते हैं, जो प्रकाश और कार्बन डाईआक्साइड से शुगर बनाने के लिए सायनोबैक्टीरिया का निर्माण करेंगे।