बिजनेस। इस बार लोन की दरें बढ़नी मुश्किल है या फिर बहुत कम बढ़ेंगी। जबकि फिक्स्ड डिपॉजिट की भी ब्याज दरें इस बार बढ़ने के बाद स्थिर हो सकती हैं या आगे चलकर थोड़ी-बहुत इसमें वृद्धि हो सकती है। दरअसल, बैंकों के कर्ज की वृद्धि अब सालाना स्तर पर 17 फीसदी के करीब हो गई है।
आरबीआई के हाल ही में जारी आंकड़ों के मुताबिक, 18 नवंबर को समाप्त हफ्ते में बैंकों की कुल उधारी 133.29 लाख करोड़ रुपये रही है, जो कि एक वर्ष पहले यह 113.96 लाख करोड़ रुपये थी। इसी समय में जमा की वृद्धि दर केवल 9.30 फीसदी रही है जो कि 177.15 लाख करोड़ रुपये रही थी। एक वर्ष पहले यह 162 लाख करोड़ थी। यानी सीधे-सीधे बैंकों को अगर 17 फीसदी की उधारी की वृद्धि दर बनाए रखनी है तो उनको जमा पर ब्याज दर बढ़ाना ही होगा। क्योंकि जमा की तुलना में कर्ज की मांग दोगुना के करीब है।
एफडी में निवेश का है अच्छा मौका :-
इस बार भी आरबीआई की एमपीसी बैठक में दरों को बढ़ाने का फैसला लिया जाएगा। हालांकि, यह पहले की तुलना में कम होगी। ऐसी स्थिति में आगे भी एफडी या जमा पर ब्याज दरें बढ़ जाएंगी। निवेशकों को एक बेहतर ब्याज पर निवेश का मौका मिलेगा।
फिक्स्ड डिपॉजिट दर :-
पिछले चार बार में रेपो दर में 1.90% की वृद्धि के बाद एफडी की दरें भी ऊपर चली गई हैं। छोटे बैंक इस समय 8 से 8.50% तक ब्याज दे रहे हैं। हालांकि निवेशक चाहें तो कुछ एनसीडी में दांव लगा सकते हैं जहां अभी पांच साल के निवेश पर सालाना 10% से ऊपर ब्याज मिल रहा है। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के मुख्य अर्थशास्त्री सुवोदीप रक्षित कहते हैं कि आरबीआई रेपो दर में 0.35% की बढ़त कर सकता है।
- निर्णय सर्वसम्मति से होने की संभावना नहीं है। घरेलू मांग स्थिर बनी हुई है। हालांकि वैश्विक मांग में कमी का जोखिम बढ़ रहा है। इससे भारत की आर्थिक वृद्धि दर पर असर पड़ने का अनुमान है। बाहरी क्षेत्र की स्थिति अनिश्चित बनी हुई है। अधिकांश विकसित अर्थव्यवस्थाओं में महंगाई ज्यादा बनी हुई है। हालांकि, कमोडिटी की कीमतों में कमी आई है।
- कच्चे तेल की कीमतों में हालिया गिरावट भी उत्साहजनक है। हालांकि यह अनिश्चित है कि यह बनी रहेगी या नहीं। ये कारक आरबीआई को दर वृद्धि की गति को धीमा करने में कुछ विश्वास प्रदान करेंगे।