अब बगीचों में उगेगा कैंसर से लड़ने में सहायक जंगली फल काफल

हिमाचल प्रदेश। कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों की रोकथाम में मददगार काफल अब बगीचों में भी उगाए जा सकेंगे। आईआईटी मंडी के सहयोग से फल वैज्ञानिकों ने इस जंगली फल का बगीचा तैयार करने की कवायद शुरू कर दी है। दावा किया जा रहा है कि यह सूबे का ही नहीं बल्कि देश का पहला काफल उद्यान होगा, जो दो-तीन साल में मई जून के सीजन में फल देना शुरू कर देगा। यह जंगली औषधीय फल 1500 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है और इन पेड़ों पर वर्ष में सिर्फ एक बार ही यह फल लगता है। अधिक ठंडक और गर्मी वाले इलाकों में काफल के पेड़ नहीं मिलते। यही कारण है कि लोग वर्ष में सिर्फ एक बार मिलने वाले इस फल की खरीदारी के लिए इंतजार में रहते हैं। स्वाद बढ़ाने के लोग लिए सेंधा नमक के साथ इस फल को खाना पसंद करते हैं। काफल के बाहर एक रसीली परत होती है, जबकि अंदर एक छोटी सी सख्त गुठली होती है, लेकिन इस फल को गुठली सहित खाया जाता है। सीजन में यह फल चार सौ रुपये किलो तक बिकता है। काफल का वैज्ञानिक नाम माइरिका एसकुलेंटा है। फल में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट तत्व पेट से संबंधित रोगों को खत्म करते हैं। इस फल से निकलने वाला रस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है। निरंतर सेवन से कैंसर एवं स्ट्रोक जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है। कब्ज या एसिडिटी में भी कारगर है। फल के ऊपर मोम के प्रकार के पदार्थ की परत होती है जोकि पारगम्य एवं भूरे व काले धब्बों से युक्त होती है। यह मोम मोर्टिल मोम कहलाता है तथा फल को गर्म पानी में उबालकर आसानी से अलग किया जा सकता है। यह मोम अल्सर की बीमारी में प्रभावी होता है। मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों के इलाज के लिए भी काफल काम आता है। इसके तने की छाल का सार, अदरक तथा दालचीनी का मिश्रण अस्थमा, डायरिया, बुखार, टायफायड, पेचिश तथा फेफड़े ग्रस्त बीमारियों के लिए अत्यधिक उपयोगी है।

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