मुंबई। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार पर आई संकट अप्रत्याशित नहीं है। राज्य विधान परिषद के चुनाव परिणामों के बाद से ही ऐसी राजनीतिक स्थितियां उत्पन्न हो गयी थीं जिससे सरकार के खिलाफ बगावत के सुर काफी मुखर हो गए हैं। क्राॅस वोटिंग से न केवल राजनीतिक असन्तोष बढ़ा, बल्कि सरकार की स्थिरता के समक्ष भी प्रश्नचिह्न लगा।
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को भी यह उम्मींद नहीं थी कि स्थिति इतनी गम्भीर हो जाएगी। शिवसेना के वरिष्ठ मंत्री एकनाथ शिंदे जिस प्रकार अपने समर्थक विधायकों के साथ पहले गुजरात के सूरत में और उसके बाद असम की राजधानी गुवाहाटी में पहुंचे, वह स्थिति की गम्भीरता का ही संकेत हैं।
शिन्दे का दावा है कि शिवसेना के 40 विधायकों सहित उनके साथ कुल 46 विधायक हैं। शिन्दे को मनाने की पूरी कोशिश भी हुई लेकिन महाराष्ट्र के सियासी संकट में कोई कमी नहीं आई। महाराष्ट्र में तीन दलों की मिली-जुली सरकार नवम्बर 2019 में अस्तित्व में आई। इनमें शिवसेना के अतिरिक्त कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शामिल हैं, जिनकी राजनीतिक विचारधारा भी अलग-अलग हैं लेकिन सत्ता के लिए इन तीन दलों ने गठजोड़ कर लिया।
आपसी खींचतान के बीच उद्धव सरकार ने अपना आधा कार्यकाल भी पूरा कर लिया। इसके पहले भी दो बार महाराष्ट्र में सियासी संकट उत्पन्न हुआ था लेकिन सरकार खतरे से उबर गई। इस बार तीसरी बार संकट कुछ अधिक है। इससे उबरने के आसार कम हैं। इस प्रकार के संकट का उत्पन्न होना इस बातका संकेत है कि पार्टियों का आन्तरिक प्रबन्धन ठीक नहीं है।
एक तरफ एकनाथ शिन्दे यह दावा करते हैं कि मैं बागी नहीं हूं, बल्कि हम लोग बाला साहब ठाकरे के भक्त शिव सैनिक हैं तो दूसरी ओर वह उद्भव सरकार के खिलाफ विरोध का बिगुल भी बजा रहे हैं। शिन्दे ने यह भी दावा किया है कि हमारी शिवसेना ही असली है। इससे सियासी संकट ने एक और मोड़ ले लिया है। तेजी से बदलते घटनाक्रम से महाराष्ट्र में कुछ भी हो सकता है। इसमें उद्धव सरकार का इस्तीफा भी शामिल हो सकता है।