कानून बनाते समय भी जनता की भूमिका…

नई दिल्ली। विधायिका को कानून बनाते समय सदन में चर्चा से पूर्व जनता से भी राय लेने का सुझाव लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने दिया है। यह कदम अत्यन्त महत्वपूर्ण और स्वागत योग्य है। लोकसभा अध्यक्ष का अच्छे कानून पर जन संवाद का सुझाव जनता और सरकार के हित में है। इसपर गम्भीरता से चिन्तन, मंथन करने की आवश्यकता है। यह सभी राज्यों के लिए अनुकरणीय है। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन एक देश, एक विधायी प्लेटफार्म के लिए मील का पत्थर साबित होगा जिससे देश के सभी विधानमण्डलों को एक डिजिटल मंच पर लाना सुगम होगा।

जन तंत्र तो जनता का तंत्र है जिसमें जनता की भूमिका अहम होनी चाहिए। जनतंत्र, जनता के लिए, जनता का और जनता के द्वारा रखी गई  बुनियाद पर टिका है। इसको देखते हुए ऐसा लगता है कि अच्छे कानून पर जन संवाद बेहद जरूरी है। लोकसभा अध्यक्ष ने हाल ही में उत्तर प्रदेश विधानसभा में ई-विधान सिस्टम के लोकार्पण और विधायकों के सम्बोधन कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुए निर्वाचित जन- प्रतिनिधियों और कानून निर्माता के रूप में उनके गुरुतर दायित्वका अहसास कराया। साथ ही सदनों में सदस्यों की अमर्यादित व्यवहार पर चिन्ता भी जताई। सदन के सदस्यों को लोकसभा के अध्यक्ष के वक्तव्य के निहितार्थ को समझने और अमल में लाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि विधायिका का मूल काम कानून बनाना है जिसे बहुत जिम्मेदारी से करने की आवश्यकता है। कानून बनाने के लिए सदन में व्यापक, गम्भीर और अर्थपूर्ण चर्चा होनी चाहिए लेकिन इसके लिए जनता से भी सार्थक संवाद जरूरी है। जनसंवाद पर लोकसभा अध्यक्ष का जोर देना इस बात का संकेत है कि सदस्यों का कानून बनाने में जन-आकांक्षाओं पर ध्यान कम और अपने पर ज्यादा है, जो नारेबाजी, हंगामे का कारण बनती है। इससे सदनों की गरिमा गिरती जा रही है जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। सदस्यों को यह नहीं भूलना चाहिए कि सदन की उच्च मर्यादा और प्रतिष्ठा बनाये रखने का संवैधानिक और नैतिक उत्तरदायित्व उन्हीं पर है। सदस्यों के आचरण और व्यवहार के आधार पर ही सदन की गरिमा तय होती है।

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