नई दिल्ली। कोवि़ड-19 का भी रक्तबीज की तरह रोज नए नए वेरिएंट आ रहा है। अभी एक का कहर समाप्त नही होता है कि दूसरे का जारी हो जा रहा है। इससे बचाव के लिए सरकार भी हर प्रकार के प्रयास कर रही है। इसके तहत टीकाकरण को सबसे अहम माना जा रहा है।
सरकार ने 10 अप्रैल से 18 से 59 साल तक के लोगों को प्रिकॉशनरी यानी ऐहतियातन डोज लगवाने का रास्ता तो साफ कर दिया है। पर सवाल यह है कि पहले दो डोज लगने के बाद अब भी क्या प्रिकॉशनरी डोज सभी के लिए जरूरी है? क्या यह सभी को लगवानी चाहिए? इसका जवाब देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स के पैनल की ओर से दिया जा रहा है।
प्रिकॉशनरी डोज क्या है और कौन लगवा सकता है:- कोरोना के मामले में यह देखा गया है कि वैक्सीन लगवाने के बाद जो ऐंटिबॉडी बनती है, वह ज्यादातर मामलों में 6 से 8 महीनों तक रहती है। प्रिकॉशनरी डोज उन लोगों के लिए है, जिनकी इम्यूनिटी कमजोर स्थिति में पहुंच चुकी हो। यह पहली और दूसरी डोज लगने के बाद ही लगवाई जा सकती है। जिस किसी को दूसरी डोज लिए हुए 9 महीने का वक्त बीत चुका है और उसकी उम्र 18 साल से ज्यादा है।
इनके लिए जरूरी है:- फ्रंटलाइन वर्कर्स, जैसे: मेडिकल स्टाफ, बैंक स्टाफ, पुलिस, मीडिया के लोग आदि। 18 साल से ज्यादा उम्र के ऐसे लोग जिन्हें कैंसर, लिवर, किडनी, हार्ट, लंग्स खासकर टीबी की बीमारी है। अगर इन अंगों का ट्रांसप्लांट हुआ है, तो भी इम्यूनिटी की स्थिति कमजोर ही मानी जाती है।
इनके अलावा शुगर के पुराने मरीज, जो पहले गंभीर रूप से बीमार रहे हैं और कम से कम 7 दिनों तक स्टेरॉइड की हेवी डोज चली है। जिन लोगों की उम्र 50 साल से ज्यादा है। पांच-सात साल से शुगर और बीपी के मरीज हैं, वे भी इसे लगवाने पर विचार कर सकते हैं। अमूमन ऐसा माना जाता है कि शुगर पेशेंट की इम्यूनिटी कमजोर होती है।
इनके लिए कम जरूरी है:- 50 वर्ष से कम उम्र के हैं और 2020 या 2021 में कोरोना से पीड़ित हो चुके हैं, चाहे हल्के लक्षण उभरे थे या नहीं। कोरोना की दोनों डोज लग चुकी हैं। ऐसे लोगों की इम्यूनिटी काफी अच्छी मानी जाती है। इसलिए इन्हें खतरा कम है।
इस डोज से कितना फायदा:- अगर किसी को कोई गंभीर बीमारी है तो उन्हें प्रिकॉशनरी डोज लगवाने से फायदा होगा। कोरोना के खिलाफ शरीर में मौजूद ऐंटिबॉडी की संख्या अगर वक्त बीतने के साथ कम हो जाए या कमजोर पड़ जाए तो प्रिकॉशनरी डोज ऐंटिबॉडी की संख्या को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा सकती है।