नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने क्रिकेटर से नेता बने पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को 34 साल पुराने रोड रेज मामले में 2018 का अपने ही फैसले को पलट दिया तथा गुरुवार को एक साल के कारावास की सजा सुनायी। न्यायालय ने मई 2018 में 65 साल के बुजुर्ग की गैर-इरादतन हत्या के मामले में दोषी ठहराया था और मात्र एक हजार का जुर्माना लगाकर सिद्धू को छोड़ दिया था। लेकिन पीड़ित परिवार की पुनर्विचार याचिका के बाद अपना फैसला बदल दिया।
पिछले कुछ वर्षों में यह पहला मामला है जब शीर्ष न्यायालय ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर बरी किये गये अभियुक्त को दण्ड दिया है। न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और एसके कौल की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हमें लगता है कि रिकार्ड में एक त्रुटि स्पष्ट है इसलिए हम लगाये गये जुर्माने के अतिरिक्त एक साल के कारावास की सजा देना उचित समझते हैं। न्यायालय का यह कहना काफी मायने रखता है कि सिद्धू हट्टे-कट्टे अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेटर थे और वे अपने मुक्कों के प्रहार का असर जानते थे। वे अपने से दो गुनी उम्र के व्यक्ति को पीट रहे थे, जिन्हें हम निर्दोष नहीं मान सकते।
सजा का ऐलान करते हुए पीठ की यह टिप्पणी अहम है कि अपराध के समानुपातिक दण्ड देना जरूरी है, क्योंकि पर्याप्त दण्ड नहीं दिया गया तो समाज में भय पैदा नहीं होगा। न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह किए गये अपराध और उसके अंजाम देने की प्रकृति के अनुरूप उचित दण्ड दें। न्यायालय का फैसला उचित और न्यायसंगत है। पीड़ित को यह न्याय और पहले मिल जाना चाहिए। विलम्बित न्याय ही आज न्याय के औचित्य पर सवाल खड़ा करता है। यह तो एक तरह से पीड़ित को ही सजा देने जैसा है। न्याय सब के लिए समान है चाहे वह कोई रसूखवाला हो अथवा समाज के अंतिम पायदान पर बैठा व्यक्ति हो। न्यायिक प्रक्रिया को सरल और उपयोगी बनानेकी जरूरत है, ताकि पीड़ित को शीघ्र न्याय मिल सके।