नई दिल्ली। विश्व बैंक ने हाल ही में जो रिपोर्ट प्रस्तुत की है, वह चिन्ताजनक है। रिपोर्ट के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कामकाजी महिलाओं के योगदान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। पिछले दो वर्षों के दौरान काफी संख्या में महिलाओं की काम में वापसी नहीं हुई है।
कोरोना महामारी ने पूरे विश्व की अर्थ व्यवस्था को प्रभावित किया है। काफी संख्या में लोग बेरोजगार भी हुए हैं। ऐसी स्थिति केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों में भी देखी जा रही है। ऐसे कई सर्वेक्षणों से यह तथ्य सामने आया है।
भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या घटने से देश को आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ी है। आधी आबादी की जीडीपी में अब केवल 17 फीसदी हिस्सेदारी रह गयी है। कामकाजी महिलाओं की संख्या में अभी गिरावट चिंता का विषय है, क्योंकि अर्थव्यवस्था को गति देने में महिलाओं का विशेष योगदान रहा है।
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 2010 से 2020 के बीच काम काजी महिलाओं की संख्या देश में 26 प्रतिशत से घटकर 19 प्रतिशत रह गयी है। यदि कोई महामारी फिर से आती है तो यह संख्या और कम हो सकती है। वर्ष 2020-21 में देश का आर्थिक विकास दर नकारात्मक – 6.6 प्रतिशत था जो 2021- 22 में बढ़कर 8.7 फीसदी हो गया।
आर्थिक विकास की गाड़ी पटरी पर लौटने के बावजूद महिला कार्यबल की संख्या घटती जा रही है। इसे उचित नहीं माना जा सकता है। देश में पुरुषों और महिला वर्क फोर्स के बीच 58 प्रतिशत का अन्तर है। यदि इसे 2050 तक पाटा गया तो भारत की जीडीपी में एक तिहाई की बढ़ोतरी हो सकती है, जो छह ट्रिलियन अमेरिकी डालर के बराबर है।
भारत की जनसंख्या में महिलाओं की भागीदारी 48 प्रतिशत है लेकिन जीडीपी में योगदान 17 प्रतिशत है जबकि चीन में 40 प्रतिशत है। इसलिए महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रयास करना आवश्यक है।