नई दिल्ली। सरकार ने प्राविडेंट फंड (पीएफ) पर मिलने वाली ब्याज दर घटा कर कर्मचारियों और श्रमिकों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। भविष्य निधि संघटन (ईपीएफओ) की शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्था केन्द्रीय न्यासी बोर्ड (सीबीटी) ने 2021-22 के लिए ईपीएफपर मिलने वाली ब्याज दर को 8.5 से घटाकर 8.1 प्रतिशत ब्याज देने का जो निर्णय किया था,
उस पर मुहर लगा दिया। एक तरफ देश में लोग महंगाई से जूझ रहे हैं, ऐसे में ब्याज दर में कमी कर वित्त मंत्रालय ने कर्मचारियों के साथ बड़ा अन्याय किया है। इस कटौती के बाद ईपीएफ पर ब्याज दर चार दशक में सबसे कम हो गयी है। यह कटौती ऐसे समय की गयी है जब बैंकों के रेपो रेट में वृद्धि की जा रही है।
इससे लम्बे समय से भविष्य निधि पर ब्याज दर बढ़ने का इन्तजार कर रहे लोगों को बड़ा आघात लगा है। इससे आर्थिक बोझ बढ़ेगा और कर्मचारियों की मुश्किलें भी बढ़ेंगी। इससे पूर्व 1985- 86 में पीएफ पर मिलने वाली ब्याज दर आठ प्रतिशत थी, लेकिन
1989-90 में यह ब्याज दर अपने उच्चतम स्तर 12 प्रतिशत पहुंच गयी थी परन्तु उसके बाद से लगातार ब्याज दर में कमी देखी जा रही है, जो कर्मचारियों के हित के प्रतिकूल है। भविष्य निधि पर मिलने वाला ब्याज सेवानिवृत्ति के बाद जीवनयापन का मुख्य आधार होता है और बुढ़ापे में लाठी का काम करता है।
ऐसे में ब्याज दर बढ़ाने की जगह उसे और घटा देना कहीं से भी न्यायसंगत नहीं है। सरकार के इस फैसले से लगभग छह करोड़ से अधिक लोग निराश ही होंगे। यदि ब्याज दर बढ़ाने की स्थिति नहीं तो ब्याज दर घटाना भी नहीं चाहिए था।
इससे भीषण महंगी के दौर में उनकी आर्थिक दिक्कतें बढ़ेंगी। सरकार को एक बार फिर इस फैसले पर विचार कर कर्मचारियों की आर्थिक दिक्कतें कम करने का प्रयास करना चाहिए।