Moonland of Ladakh: नई नई जगहों पर घूमने फिरने के शौकीन लोगों के लिए लेह-लद्दाख किसी जन्नत से कम नहीं है. यहां मौजूद मैग्नेटिक हिल, पैंगोंग झील, लेह पैलेस और चादर ट्रैक से जुड़ी रील्स तो आपने सोशल मीडिया पर कई बार देखी होंगी, लेकिन क्या आन जानते है कि यहां भारत का चांद भी है.
जी हां. आपको बता दें कि लेह और कारगिल के बीच एक छोटे-से गांव में इंडिया का मून लैंड (Moonland of Ladakh) भी छिपा हुआ है. दरअसल, लेह से करीब 120 किलोमीटर की दूरी स्थित लामायुरु गांव की जमीन ऐसी है, जिसे देखने के बाद आपको सबसे पहले चांद की ही याद आएगी. ऐसे में ख्लिए जानते है कि इससे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें..
Moonland of Ladakh: मून लैंड के नाम से मशहूर
लेह से करीब 120 किलोमीटर दूर स्थित लामायुरू गांव को मून लैंड के नाम से मशहूर है. इसे लेकर एक वैज्ञानिक का कहना है कि यहां न तो पेड़-पौधे हैं और न ही ज्यादा हवा या कोई दवाब. इसी वजह से इसे लद्दाख का मून लैंड कहा जाता है.
Moonland of Ladakh: पहले हुआ करती थी झील
लद्दाख के इस मून लैंड का जियोलॉजिकल सिग्निफिकेंस भी है. आपको बता दें कि सूखे हुए पेड़ों का ये इलाका पहले से ही ऐसा नही था. कहा जाता है कि 35-40 हजार साल पहले लामायुरू में एक बहुत बड़ी झील हुआ करती थी, जिसका पानी धीरे-धीरे चला गया, लेकिन झील में जो चिकनी मिट्टी जमा होती है, वह रह गई जिससे लंबे समय में पड़ने वाले दरारों की वजह से ऐसा रूप ले लिया, जो अब हमें चांद और मंगल ग्रह की याद दिलाता है.
Moonland of Ladakh: वैज्ञानिकों के लिए खजाना है ये जगह
वहीं, मंगल और चांद की सतह पर अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों के लिए ये जगह किसी खजाने से कम नहीं है. वैज्ञानिकों का मानना है कि सैटेलाइट से मिले डेटा को सही ढंग से जानने के लिए धरती पर इन जगहों को समझना और इसपर शोध करना बेहद ही आवश्यक है. ऐसे में साइंटिस्ट हों या फिर टूरिस्ट, लद्दाख की ये मोनेस्ट्री सभी को अपनी तरफ आकर्षित करने के साथ-साथ चांद पर चलने का अनुभव भी देती है.
देश-विदेश से आते है टूरिस्ट
यहां हर साल युरू कबग्यात नाम का एक एनुअल फेस्टिवल को भी सेलिब्रेट किया जाता है, जहां लामाओं द्वारा किया जाने वाला मास्क डांस और प्रकृति की खूबसूरती देखने के लिए देश-विदेश के कई टूरिस्ट पहुंचते हैं.
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