झांसी। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का 116 वां जन्मदिन 29 अगस्त को मनाया जा रहा है। उनकी याद में ध्यानचंद के अपने शहर झांसी में भी बड़े-बड़े आयोजन हो रहे हैं। दद्दा ध्यानचंद का परिवार भी उनकी यादों को संजोए उनके जन्मदिन की तैयारी में जुटा है। ऐसे में दद्दा के बेटे अर्जुन एवं यश भारती अवार्ड से सम्मानित अशोक ध्यानचंद ने अपनी चंद यादें साझा कीं। वह बताते हैं कि दद्दा कच्चे कमरे में रहते थे। मजबूरी के कारण उनका परिवार छह साल तक बिना बिजली के अंधेरे में रहा, बच्चों को लालटेन जलाकर पढ़ाई करनी पड़ी। घर में पानी का कोई इंतजाम नहीं था, बच्चे घर से दूर बने कुएं से पानी भरकर लाते थे। अशोक ध्यानचंद बताते हैं कि उनके भरे-पूरे संयुक्त परिवार में बुआ सूरजा देवी और चाचा-चाची सहित 30 लोग थे। महिलाएं घर में चकिया चलाकर गेहूं पीसती थीं। दद्दा अपनी पत्नी जानकी देवी का नाम नहीं लेते थे, वह हमेशा घूंघट में रहती थीं इसलिए उन्हें अरे सुनो.. कहकर बुलाते थे। सन 1936 में जब ध्यानचंद ओलंपिक खेलने जा रहे थे तो पत्नी जानकी ने घूंघट के अंदर से ही उन्हें निहारा और ध्यानचंद भी उन्हें निहारते हुए ओलंपिक खेलने निकले थे। वह बताते हैं कि घर में कमाने वाला एक ही व्यक्ति था। मां और पिता जिस कमरे में रहते थे वह भी कच्चा कमरा था। उसे गोबर से लीपा जाता था। अशोक ध्यानचंद बताते हैं कि झांसी में न्यू रायगंज के घर में पिताजी वर्ष 1956 में आए थे। तब इलाके में बिजली भी नहीं थी। घर के सामने बिजली का खंभा आने में छह साल लग गए। 1962 में बिजली आ सकी। मजबूरी में खाना-पीना, सोना-पढ़ना सब काम गैस बत्ती और लालटेन में करना पड़ता था। घर से दूर कुएं पर अम्मा जानकी देवी पानी खींचती थीं और वह सब भाई मिलकर पानी भरते थे। राशन की दुकान में लाइन लगाकर राशन लाते थे। वह बताते हैं कि पद्म भूषण से सम्मानित दद्दा बेहद अनुशासन प्रिय और सादगी पसंद थे। अशोक ध्यानचंद बताते हैं कि दद्दा को अरहर की दाल तो इतनी पसंद थी कि वह इसे हर रोज खाते थे। वहीं, मीट के अलावा आलू-प्याज की सब्जी और पराठे दद्दा की पहली पसंद थे। एक बड़ा गिलास दूध पीना उनकी रोज की आदत थी। सफेद टीशर्ट, पैंट और चमचमाते जूते ही पहनते थे। अशोक ध्यानचंद बताते हैं कि पिता जी वर्ष 1928 में एम्स्टर्डम ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम से खेले थे। उस वक्त उन्हें 102 बुखार था। उन्हें खेलने से मना किया गया तो उन्होंने कहा कि वह फौजी हैं, अपने देश के लिए जरूर खेलेंगे। मैच में उन्होंने नीदरलैंड के खिलाफ फाइनल में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया। यहीं से लोग उन्हें हॉकी का जादूगर कहने लगे।