राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि वेदार्थो निश्चेतव्य स्मृति इतिहास पुराणैः। वेद ज्ञान का मूल है। उसको जानने के लिए हमें स्मृति, इतिहास और पुराण की शरण में जाना पड़ता है। वेद के अर्थ का निर्णय स्मृति, इतिहास और पुराण से किया जाता है। वेद के दो भाग हैं- पूर्व भाग और उत्तर भाग। पूर्व भाग में कर्मकांड और उत्तर भाग में ज्ञानकांड, जिसमें ब्रह्म का निरूपण किया गया है। वेद के पूर्व भाग कर्मकांड का निर्णय स्मृतियों के द्वारा होता है, वेद का जो उत्तर भाग है ब्रह्म मीमांसा, उसका निर्णय इतिहास और पुराण के द्वारा होता है। इतिहास क्या है, रामायण और महाभारत ये दो इतिहास है। अठ्ठारह पुराण हम आपको विदित है। इतिहास पुराण के द्वारा ही ब्रह्मतत्व का निर्णय होता है। इसलिए इतिहास पुराण की बड़ी महिमा है। उसमें विष्णु पुराण की बहुत महिमा है। विष्णु पुराण में ब्रह्म, जीव, माया तत्व का वास्तविक निरूपण किया गया है। माया भगवान की अचिन्त्य शक्ति है। तत्व तीन है, 1-परमात्मा 2-जीव 3-माया
तीन तत्व है और तीनों नित्य हैं। भगवान भी नित्य और अनादि है। जीव भी नित्य और अनादि है और भगवान की माया भी नित्य और अनादि है। तत्वत्रय का सिद्धांत विष्णु पुराण का सिद्धांत है। इन तीन तत्वों में जो ब्रह्म तत्व है उसी का विशेषण जीव और माया है। वही तत्वतत्रय को त्रिक के रूप में अनुभव करते हैं। उन्होंने कहा कि इन तीनों तत्वों को ठीक-ठीक समझना हो, इनका स्वरूप, इनका स्वभाव, ब्रह्म को कैसे प्राप्त करें, इसका तात्विक निर्णय किया गया है विष्णु पुराण में। तत्वेन यद चिदचिदीश्वर तत् स्वभावो। तत्व पूर्वक चिद् चिदीश्वर, चिद् जीव, अचिद माया, ईश्वर भगवान। तत्वेव यद् चिदीश्वर तत् स्वभाव, इनका स्वभाव और ‘भोगापवर्ग
तदुपाय गतीरूदारः’ इन तीनों का स्वभाव, भोग क्या है, अपवर्ग क्या है, मुक्ति क्या है। इसका बृहद निरूपण विष्णु पुराण में विविध कथाओं के माध्यम से किया गया है। इस ज्ञानके बिना मनुष्य यह नहीं समझ पायेगा की क्या विधि है और क्या निषेध है। क्या हमें करना है और क्या नहीं करना है और जब तक हम निर्णय नहीं कर पायेंगे। जो नहीं करना उसका त्याग और जो करना है उसका आचरण नहीं करेंगे तब तक जीवन सफल नहीं होगा। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम) का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में दिव्य चातुर्मास के पावन अवसर पर श्री विष्णु महापुराण कथा के तृतीय दिवस ब्रह्म, जीव, माया का चिंतन विविध कथाओं के माध्यम से किया गया। कल की कथा में भगवान विष्णु के प्राकट्य की कथा का गान किया जायगा।