राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि आराधनीय जो भगवान पुरुषोत्तम हैं। उन भगवान की आराधना से ही धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थ प्राप्त होते हैं। यश, कीर्ति कुछ भी चाहते हो तो भगवान की आराधना करो। सर्व वचसां प्रतिष्ठा समस्त वाणियों के एकमात्र विषय और तात्पर्य परमात्मा ही है। दुनियां के जितने शब्द हैं, वाणी है, उसका आखरी निष्कर्ष परमात्मा ही है। पर्यवसान वृत्ति से सभी शब्द और वाणी भगवान का ही बोध कराती है। यह श्री विष्णु महापुराण का बहुत गंभीर विषय है। इस पर बहुत चर्चा है। विशिष्टाद्वैत वेदांत में इस पर बहुत चर्चा है। पर्यवासान वृत्ति से दुनियां के जितने शब्द हैं, वो भगवान का ही बोध कराते हैं।
जैसे किसी व्यक्ति का नाम देवदत्त है। देवदत्त कहने पर पहला बोध पांच हाथ के आदमी का होता है। देवदत्त कौन है?(क) ये जो खड़ा है। जिसका हाथ पैर उस शरीर का बोध हुआ। (ख) देवदत्त के अंदर जो आत्मा है, उसका बोध देवदत्त से हुआ, उससे उत्कृष्ट बोध। (ग) तीसरा उस आत्मा के अंदर जो परमात्मा बैठा है, उसका वोध भी उसी देवदत्त से होता है। इसको कहते हैं पर्यवसान वृत्ति। सारे शब्द पर्यवसान वृत्ति से भगवान का ही बोध कराते हैं। इस वृत्ति का अनुगमन करते हुए गुरु ने शिष्य से कहा तुम ही ब्रह्म हो, वेदांत के चार वाक्य, चार वेद के चार वाक्य हैं। तत्त्वमसि,अयमात्मा- ब्रह्म,प्रज्ञानमानंद- ब्रह्म,अहंब्रह्मऽस्मि। तत्त्वमसि- गुरु अपने शिष्य से कहता है। हे श्वेतकेतु! तत्वमसि- वह ब्रह्म तुम हो। तुम शब्द से जो ब्रह्म का बोध कराया, तो पहले तुम का मतलब वो पांच हाथ का शरीर। तुम परमात्मा कैसे हो?तो पहले तुम मतलब शरीर, दूसरा भाव तुम मतलब अंदर विराजमान आत्मा, फिर तुम मतलब उस आत्मा के भी भीतर अंतर्यामी रूप से विराजमान परमात्मा का बोध है। इस दृष्टि से वेदांत में कहा तत्त्वमसि। अयमात्माब्रह्म- आत्मा ही ब्रह्म है। तो अय शब्द का पर्यवशान वृत्ति से परमात्मा का बोध होता है। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम) का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में ‘दिव्य चातुर्मास’ के अंतर्गत- श्री विष्णु महापुराण कथा के अष्टम दिवस श्री लक्ष्मी नारायण भगवान की विवाह की कथा का गान किया गया। कल की कथा में षष्ठम अंश की कथा होगी।