सभी को सुखी जीवन जीने के सूत्र सिखाते हैं श्रीकृष्ण के आदर्श

एस्ट्रोलॉजी। आज जन्माष्टमी का पावन त्योहार है और आधी रात को बाल गोपाल का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। जन्माष्टमी का त्योहार भारतीय जनमानस में रचे-बसे योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। श्रीकृष्ण जन-जन के लिए ऐसे आदर्श हैं, जो सभी को सुखी जीवन जीने के सूत्र सिखाते हैं। वे पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक से परे पूर्ण पुरुष की अवधारणा को साकार करते हैं। श्रीकृष्ण के जीवन में संघर्ष, प्रेम, रस, विरह, कलह, युद्ध, ज्ञान, भक्ति सब कुछ समाहित है। श्रीकृष्ण के जन्म दिवस उनके गुणों को याद करने और उन्हें आत्मसात का दिन है। आइए इस पावन अवसर पर जानते है श्री कृष्ण के नौ प्रतीकों के बारे में। चंदन:- चंदन भगवान कृष्ण को अत्यंत प्रिय है। इसके बिना इनकी पूजा पूर्ण नहीं होती। यह गोपी चंदन, हरि चंदन, सफ़ेद चंदन सहित कई प्रकार का होता है। चंदन ताजगी का प्रतीक है। गोवर्धन पर्वत:- श्री कृष्ण के बृज में स्थित गोवर्धन पर्वत उठाए स्वरुप की पूजा-अर्चना की जाती है। गोवर्धन पर्वत को भक्तजन गिरिराज जी भी कहते हैं। ये भगवान से सरंक्षण पाने का प्रतीक है। रासलीला:- भगवान का यह स्वरूप मन को सकारात्मक ऊर्जा से भरने वाला एवं आनंद देने वाला है। इस रूप के दर्शन मात्र से समस्त चिंताएं दूर होती हैं। अतः ये आनंद का प्रतीक है। बांसुरी:- सर्वप्रथम नंदबाबा ने अपने कान्हा के लिए बांसुरी लेकर दी थी। श्री कृष्ण हर पल प्रेम और शांति का संदेश देने वाली बांस की बांसुरी को अपने साथ रखते हैं। बांसुरी सम्मोहन, ख़ुशी, आकर्षण व मन की शांति का प्रतीक मानी गई है। विराट रूप:- विश्वरूप अथवा विराट रूप भगवान कृष्ण का सार्वभौमिक स्वरूप है। महाभारत युद्ध होने से पूर्व कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने विराट रूप के दर्शन करवाए थे। यह रूप ऊर्जा का प्रतीक है। वैजयंती माला:- श्री कृष्ण को वैजयंती के फूल और इसकी माला बेहद प्रिय है भगवान श्री कृष्ण ने जब पहली बार राधाजी व अन्य गोपियों के साथ रासलीला खेली थी, तब वैजयंती की माला राधाजी ने उन्हें पहनाई थी। यह प्रेम का प्रतीक मानी जाती है। मोरपंख:- श्रीकृष्ण के मुकुट पर मोरपंख सबसे पहले उनकी माता यशोदा ने लगाया था। प्रेम में ब्रह्मचर्य की महान भावना को समाहित करने के प्रतीक रूप में कृष्ण मोरपंख को अपने सिर पर धारण करते हैं। यह उनके प्रेम और सौंदर्यबोध का प्रतीक है। अजितंजय:- श्रीकृष्ण ने गुरु पुत्र को शंखासुर दैत्य से मुक्त कराया था। श्रीकृष्ण को यह धनुष उनके गुरु सांदीपनि ने सौपा था। अजितंजय धनुष गुरु के सम्मान का प्रतीक है। गाय:- संसार में पृथ्वी और गौ से बड़ा कोई उदार और क्षमादान नहीं। गाय, भगवान श्रीकृष्ण को अतिप्रिय है, इसका कारण यह है गाय सब कार्यों में उदार तथा समस्त गुणों की खान है। यह क्षमा और उदारता का प्रतीक है।

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