पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भगवान् नारायण श्री विष्णु महापुराण में कहते हैं कि ज्ञानी मुझे अपनी आत्मा मान चुका है। वह मुझसे भिन्न नहीं है। मैं उससे भिन्न नहीं हूँ। उनके साथ एकात्म भाव की धारणा दृढ़ हो चुकी है। जब तक शरीर है, ज्ञानीजन मेरा चिंतन करते रहते हैं और चिंतन भी अभेद भाव से करते हैं। श्रेष्ठ भक्त कौन है? भगवान् बोले- ज्ञानी मेरा श्रेष्ठ भक्त है। ज्ञानी तो मेरी आत्मा ही है। ज्ञानी मुझे प्यारा है और मैं ज्ञानी को प्यारा हूँ। ज्ञानी मुझे कभी भूल नहीं पाता। ज्ञानी की दृष्टि से मैं कभी ओझल नहीं होता और मेरे हृदय से ज्ञानी कभी ओझल नहीं होता। दुनियां में चार प्रकार के भक्त हैं- आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी, ज्ञानी। अर्थार्थी-भगवान् लक्ष्मीनारायण की आराधना तो करता है, लेकिन भावना यही रहती है। सुख सम्पति घर आवे कष्ट मिटै तनका। वह सुख सम्पदा के लिए ईश्वर की आराधना करता है। सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी भक्त है। माया से बचने के लिए भजन में डूबे रहो, गोस्वामी श्री तुलसीदास जी विनय पत्रिका में लिखते हैं- जीव जबते हरि ते विलगानो। जीव जबसे स्वयं को हरि से अलग माना, तब ते निज देहि गेहि जान्यो। तेहि भ्रम ते नाना दुःख पायो। माया बस स्वरूप बिशरायो।। ज्ञानी भक्त बनों । भक्ति के साथ-साथ ज्ञान रहेगा तब भक्ति कभी समाप्त नहीं होगी। कई भक्तों को देखते हैं कि गुरु के प्रति बड़ी भक्ति जागती है, लेकिन जरा-सा स्वार्थ में ठोकर लगी कि सब कुछ छोड़कर बैठ जाते हैं। प्रभु को अपना मान लेने के पश्चात चिंता क्यों? कबीरा यह जग आय के बहुतक कीने मित्त।
जिन दिल दीना एक को ते सोवे निश्चित।। जिन्होंने बहुत नाते-रिश्तेदारों को दिल दिया है, उनके दिल में दर्द बना ही रहा, जिन्होंने एक परमात्मा को दिल दे दिया, वह निश्चिंत होकर सो रहे। जब जीवन एक को दे दिया, उसके बन गए, फिर किस बात की चिंता है। अरबपति के घर में ब्याहने पर कन्या को रोटी कपड़े की चिंता नहीं रही, वह निश्चिंत हो गई, लेकिन आप भगवान् का घर अपना बना कर भी चिंता करते रहते हो कि बाल-बच्चों को रोटी कैसे मिलेगी? किसी कवि ने बहुत अच्छी कहा कि वह परमात्मा मुर्दा शरीर को भी कपड़ा (कफन) और लकड़ी देता है। आपके शहर में किसी सड़क के किनारे कोई भिखमंगा मर जाए, जिसके आगे- पीछे कोई न हो, मोहल्ले वाले उसे कफन (ढकने के लिए कपड़ा) चिता के लिए लकड़ी और जलाने के लिए आग देंगे या नहीं? क्या वह मांग रहा है, नहीं मांग रहा, यह दोहा बहुत अच्छा है। मुर्दे को प्रभु देता है कपड़ा लकड़ी आग। जिंदा नर चिंता करे ताके बड़े अभाग।। रोटी कपड़े की कमी होने देगा नहीं। सारी इच्छाएं तुम्हारी पूर्ण होने देगा नहीं। यह दोनों बातें सदैव याद रखना। आप भजन करते हो, यदि आपकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाएंगी, तब आपका भजन छूट जाएगा और कुछ अधूरी रहेंगी, तब भजन होता रहेगा। यदि भजन होता रहेगा, तब भगवान् की प्राप्ति हो जाएगी। इसलिए ज्यादातर भजन करने वालों की आर्थिक अवस्था सामान्य ही हुआ करती है। यह भगवान् का श्राप नहीं है, यह भगवान् की कृपा है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।