अज्ञान के आवरण को दूर करने पर ही प्राप्‍त होगा ईश्‍वर का अनुभव : दिव्‍य मोरारी बापू    

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि आवरण और ईश्वर- मानव मात्र परमात्मा का स्वरूप है. अज्ञान के आवरण से ही वह जीवभाव से रहता है. अज्ञान के आवरण से रहित चेतना अर्थात् ईश्वर और अज्ञान के आवरण से युक्त चेतना अर्थात् जीव. ज्ञानी महापुरुष इन दोनों तत्वों में किसी प्रकार का भेद नहीं मानते हैं.धान और चावल एक ही हैं, किन्तु धान से भात नहीं बनता. उनके ऊपर के छिलके उतारने के बाद ही भात बनाया जा सकता है. इसी तरह चेतना के ऊपर छाए हुए अज्ञान के आवरण को दूर करने पर ही ईश्वर तत्व का अनुभव प्राप्त किया जा सकता है. धान अर्थात् अज्ञान के आवरण से युक्त चेतना. धान अर्थात् जीव और चावल अर्थात् अज्ञान के आवरण से रहित चेतना. चावल माने ईश्वर.

अज्ञान के इस आवरण को हटाने पर ही सभी में बैठे हुए परमात्मा के दर्शन किए जा सकते हैं. लक्ष्मी को माता मानकर उसका उपयोग सत्कर्म में करोगे तो वह प्रसन्न होंगी, लक्ष्मी मां के आशीर्वाद से आप सदैव संपन्न और शांत होंगे. यदि उपभोग का उद्देश्य रखकर उसका दुरुपयोग करोगे तो वह दंड देंगी. गरीबी देखना पड़ेगा, जीवन में कभी गरीबी देखना पड़े यही लक्ष्मी माता के द्वारा दिया गया दंड है. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

 




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