राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि जीवन, उत्सव उसके लिए है, जिनके जीवन में उत्साह है, पर उत्साह वहां है, जहां रस है, रस वहां है जहां गति है। इसलिए जीवन गतिशील होना चाहिए। जीवन बहती सरिता की भांति होना चाहिए। यदि ठहर गए तो जीवन पोखर बन जाएगा। गंदे पोखर के पास जाकर बैठने का मन नहीं होता। बहती हुई नदी के तट पर बैठने का मन करता है। जिनका जीवन गतिशील है, जिनके जीवन में रस है, आनन्द है, उत्साह है, उत्सव है, उन संतो के पास जाकर बैठने का मन करता है, क्योंकि उनका जीवन बहती सरिता की भांति है और वहां बैठने पर उनके दर्शन मात्र से आनन्द आयेगा। इसलिए इन्सान को कार्यशील होना चाहिए। गतिशील होना चाहिए। तो जीवन में उत्साह बना रहेगा, आनंद रहेगा, वियोग में प्रेम पुष्ट होता है। विरह के विशेष तीव्र होने पर ही परमात्मा मिलते हैं। बिलासी लोगों में रहकर निर्विकार रहना अत्यन्त कठिन है। शरीर से न सही, आंख से भी पाप हो जाता हैं। विलासी जीवन भक्ति पूर्ण जीवन का विनाशक होता है। बिलासी मनुष्य ज्ञान का अनुभव नहीं कर सकते।
सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना- श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर
जिला-अजमेर (राजस्थान)