वाराणसी। शनि जन्मोत्सव और अमावस्या पर विविध अनुष्ठान किए गए। कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए शनि मंदिर में विधि-विधान से पूजन संपन्न हुआ। वहीं गंगा घाट से लेकर पिशाचमोचन कुंड पर पितरों का पिंडदान व तर्पण की विधियां संपन्न हुईं। बृहस्पतिवार को शनि जन्मोत्सव पर श्रद्धालुओं ने न्याय के देवता भगवान शनि का पूजन-अर्चन किए। कुछ लोगों ने व्रत भी रखे और शाम को विधि विधान से पूजा की। शनि से संबंधित वस्तुओं का दान किया। शनि मंदिरों में व पीपल वृक्ष के पास दीप जलाए गए। शनि चालीसा व शनि स्तोत्र का पाठ किया। गुरुवारीय अमावस्या का संयोग होने के कारण तिथि का महत्व बढ़ गया था। ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि शनिदेव के साथ लोगों ने अपने पितरों की भी पूजा की। अमावस्या को पितरों की प्रसन्नता के लिए भी पूजन का विधान है। लक्ष्मीकुंड स्थित प्राचीन पूरबमुखी शनिदेव मंदिर में दर्शन पूजन हुआ। शनिदेव के शृंगार के साथ उनके 108 नामों का जप-यज्ञ व अनुष्ठान हुआ। वहीं पिशाचमोचन कुंड व गंगा के तट पर सुबह से तर्पण व पिंडदान करने वालों की भीड़ लगी रही। भीड़ के कारण लोग कोविड प्रोटोकॉल का पालन करना भी भूल गए।