केवल परमात्मा से है आत्मा का स्थायी सम्बन्ध: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि जिज्ञासु-जो भक्त आत्म-तत्व को जानना चाहते हैं। आत्म-तत्व क्या है और परमात्म-तत्व क्या है? आत्मा और परमात्मा का वास्तविक सम्बन्ध क्या है? आज व्यक्ति अपने वास्तविक सम्बन्धों को भूल चुका है और जो अपने नहीं हैं, उन्हें अपना मान बैठा है। बस यही जीवन की सबसे बड़ी समस्या है। श्रीविष्णुमहापुराण में ब्रह्मा जी भगवान् की स्तुति करते हुए कहते हैं-त्वामात्मानं परं मत्वा, प्रभु आप सबकी आत्मा हो लेकिन अज्ञानी लोग आपको अपनी आत्मा न मानकर अलग मानते हैं और जो वास्तव में पर हैं, दूसरे हैं, उन्हें अपना मान लेते हैं। सारे नाते-रिश्तेदार अपने नहीं हैं, पराये हैं। सब देन-लेन के सम्बन्ध हैं। कोई रिश्तेदार आपको देने आया है और कोई आपसे लेने आया है। कोई पुत्री बनकर लेने आया है और कोई पुत्र बनकर लेने आया है। किसी के ऊपर आपका कर्जा था, तब वह लायक पुत्र बनकर देने आया है। जिस दिन उसका कर्जा पूरा हो जायेगा उस दिन वह आपसे अलग हो जायेगा। धर्मशास्त्र पढ़ सुनकर यह बात बुद्धि में बिठा लो कि भगवान् श्रीलक्ष्मीनारायण हमारी आत्मा हैं। राम,कृष्ण,हमारी आत्मा हैं। वे समुद्र हैं, हम उनकी तरंग हैं। वे मिट्टी हैं, हम उनके घड़े हैं। घड़ा बना मिट्टी से, रखा हुआ मिट्टी में है और फूटकर मिट्टी में ही मिल जायेगा। गांव देहात में माताएं एक घड़े पर दूसरा, दूसरे पर तीसरा रखकर ले जाती हैं, यह घड़े का घड़े से मिलन क्षणिक है, लेकिन घड़े का मिट्टी से नित्य सम्बन्ध है। जब घड़ा नहीं बना था, तब भी मिट्टी थी, घड़ा बनकर भी घड़े में मिट्टी है और फूटकर भी मिट्टी रहेगी। जब तरंग नहीं बनी थी तब भी जल था, तरंग के रूप में भी जल ही है और जब विलीनीकरण होगा, तब भी जल ही बचेगा। ईश्वर आपकी आत्मा हैं, तरंग से तरंग का मिलन क्षणिक, तरंग से जल का मिलन स्थायी है। घड़े से घड़े का मिलन क्षणिक,घड़े से मिट्टी का नाता स्थायी है। यह दुनियां के सारे सम्बन्ध लेन-देन के नाते हैं। कोई अपना कर्जा लेने आया है, कोई देने आया है, गर्भ-गीता पढ़ना चाहिए।शास्त्रों का अध्ययन करना चाहिए, तब पता लगेगा। यह पुत्री हमारी नहीं है। हमने इससे पूर्व जन्म में जो ले लिया था, वह पुत्री बनकर वापस लेने आई हुई है। यह पुत्र हमारा नहीं है। पुत्र ने हमसे कुछ ले लिया होगा, इसीलिए पुत्र बनकर सेवा करने आया हुआ है और सेवा करके चला जाएगा। यदि हमने उससे लिया हुआ है, फिर वह नालायक पुत्र बनकर आएगा और आप कमाते जाओगे वह बर्बाद करता जाएगा। अन्त में जिन्दगी बर्बाद हो जाएगी। इसीलिए अब जागो, जागो, यह समय जागने का है। दुनियां में अपने इष्ट को छोड़कर अपना कोई नहीं है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी,दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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