राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि कथा का प्रसंग-भक्त शिरोमणि भक्तिमति श्री रत्नावती जी की मंगलमय कथा।।श्री भक्तिमती रत्नावती जी।
जयपुर के निकट अमेर नगर में निवास करने वाली सुनखाजीत की पुत्री रत्नावतीजी में सब प्रकार की भलाइयां विशेष रूप से विद्यमान थी। आप महान भक्त राजा पृथ्वीराज के कुल की वधु थीं।तथा भक्तों में श्रेष्ठ थीं। भगवान की कथा सुनने में, कीर्तन करने में आपको बड़ा प्रेम था। भक्तों की भीड़ आपको अच्छी लगती थी। बड़े-बड़े महामहोत्सव को करके प्रसन्न होती थीं। नित्य नंदलाल की पूजा करती थी। भगवान् के श्री चरण कमलों के चिंतन (ध्यान) में मग्न रहकर आपने भगवत भक्ति की पताका फहराई। भक्ति के आचरण में बाधा करने वाले पति पर लोभ न करके उनसे अपने मन को हटा लिया और संत भगवंत की
भक्तिरूप अपना प्रण नहीं छोड़ा। मन चाहता है सुख। जब तक इसे भजन सत्संग में सुख नहीं मिलता- विषयों में सुख दिखता है। जब तक यह विषयों में रमता है। जब अभ्यास से विषयों में दुःख और परमात्मा में परमसुख होने लगेगा, तब यह स्वयं ही विषयों को छोड़कर परमात्मा की ओर दौड़ेगा, परंतु जब तक ऐसा न हो तब तक निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए। यह मालूम होते ही कि मन अन्यत्र भागा है, तत्काल इसे पकड़ना चाहिए। इसको पक्के चोर की तरह भागने का अभ्यास है। जिस-जिस कारण से मन सांसारिक पदार्थों में विचरे उसे रोककर परमात्मा में स्थिर करें। मन पर ऐसा पहरा बैठा दें कि यह भाग ही न सके। यदि किसी प्रकार भी न मानें तो फिर इसे भागने की पूरी स्वतंत्रता दे दी जाए, परंतु यह जहां जाये।
जहां परमात्मा की भावना की जाय, वहीं पर इसे परमात्मा के स्वरूप में लगाया जाए। इस उपाय से भी मन स्थिर हो सकता है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि-कल गागरोन के राजा भक्त शिरोमणि श्री पीपाजी महाराज की कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम,श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश)। श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।