परोपकार में अभिमान का नहीं है कोई स्थान: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, परोपकाराय सतां विभूतयः दूसरे के कल्याण हित कार्य करना और अपने स्वार्थ को सामने कभी न रखना ही परोपकार है। पूज्य श्री गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने श्री रामचरितमानस में परोपकार की महिमा को दर्शाते हुए लिखा है। परहित बस जिनके मन माहीं।तिन कहूं जग दुर्लभ कछु नाहीं। परहित लागि तजहिं जे देही। संतत संत प्रशंसहिं तेही। परहित सरिस धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई। परोपकार से सनातन धर्म का इतिहास भरा पड़ा है। इस विषय पर एक अलग पुस्तक भी लिखी जा सकती है, परंतु प्रबुद्ध पाठक इसी संक्षिप्त विवरण से परोपकार पथ अपनायेंगे, ऐसी हमारी मंगल कामना है। भजन से परोपकार श्रेष्ठ् बतलाया गया है। बिना स्वार्थ के, निष्काम परोपकार ठाकुर की पूजा ही है। परोपकार में अभिमान का कोई स्थान नहीं है। रामायण में गीधराज जटायु ने, परोपकार का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है। श्री गोस्वामी जी लिखते हैं- गीध अधम खग आमिष भोगी। गति दीन्ही जेहिं जाजत जोगी। राज राजेंद्र चक्रवर्ती सम्राट महाराज श्री दशरथ जी को वह सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ जो वीर जटायु को अनायास मिला। पूर्व जन्म में मनु रूप में हजारों वर्ष तप करके भगवान को पुत्र रूप में प्राप्त किया, परंतु उनको ब्रह्म पुत्र द्वारा अपने संस्कार का सौभाग्य न मिला। जबकि जटायु के अंतिम समय में श्रीराम ने उन्हें अपनी गोद में लेकर, उनके रक्तरंजित पांव की धूलि को अपनी पवित्र जटाओं में धारण किया, एवं उनका अंतिम संस्कार भी स्वयं ही किया। वे संसार को संदेश देने कि जो व्यक्ति परोपकार के लिए बलिदान देता है, भगवान् उसकी धूलि को भी मस्तक पर लेकर गौरव का अनुभव करते हैं। ऐसे परोकारी भक्तों और संतो को स्नेह एवं सानिध्य देने के लिये ही प्रभु अवतार लिया करते हैं। तुम सारिखे संत प्रिय मोरे। धरहुँ देह नहिं आन निहोरे। ईश्वर प्राप्ति के मार्ग पर चलने वाला साधक यदि परोपकार को जीवन का अंग बना ले तो सफलता उसके चरण चूमेगी। प्रभु का मिलना उसके लिए सहज हो जायेगा। जब ‘ पर ‘ में ‘ स्व ‘ की भावना आ जाए तो प्रभु स्वयं उसके हृदय में प्रगट हो जाते हैं। जिसको मानव तन मिला है उसे तन छोड़ने से पहले यथासंभव परोपकार के कार्य कर ही लेने चाहिये। जीवन में सब कुछ तो परिवार नहीं है। उनके लिये ही प्रेम तो प्यार नहीं है। व्यर्थ है जीना उसका जो अपने लिये जिया। या जीवन में जिनके परोपकार नहीं है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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