शिव का स्वरूप है प्राणी: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। राष्ट्रीय संत श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू। सत्संग के अमृत बिंदु सभी कामनाओं का त्याग ही तप है। सबके साथ प्रेम करो अथवा प्रेम केवल प्रभु के साथ करो, बात एक ही है क्योंकि सबमें ईश्वर विराजमान है। सबके प्रति समभाव रखने से सत्कार्य सफल होते हैं। सबके साथ मैत्री न हो तो कोई बात नहीं, किंतु किसी के साथ वैर नहीं करो। वैर न करना मैत्री करने के समान है। सबको खुश रखे, उसके यहां भगवान आते हैं। सब को दान दो- उत्तम में उत्तम दान सम्मान-दान है। प्राणी शिव का स्वरूप है। यह मानकर सबको सम्मान दो। सबको यश प्रदान करो, अपयश अपने सिर लो। इससे ठाकुर जी प्रसन्न होंगे। जीव इतना दुष्ट है कि स्वयं यश प्राप्त करना चाहता है और दूसरों को अपयश का भागी बनाना चाहता है। सबको वन्दन करो। सबका आशीर्वाद लेकर जो घर से चलता है, उसे मार्ग में संत मिलते हैं। सबको सम्मान दोगे तो तुम्हारा जीवन मिश्री के समान मीठा रहेगा। सब तरह से शोचनीय व्यक्ति वह है जो समय और संपत्ति का दुरुपयोग करता है, जो दूसरों का अहित करता है एवं हरि का भजन नहीं करता। सब दोषों की जड़ अभिमान है। सब मंत्रों के आचार्य शिव जी हैं। शिव जी को गुरु मानकर मंत्र विद्या प्राप्त करनी चाहिए। सब में ईश्वर का भाव रखना तप है। सत्य और प्रिय बोलना वाणी का तप है। पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचार्य, अहिंसा ये शरीर के ताप हैं। सब विषयों से मन को दूर रखो। सब समझते हैं कि असत्य बोलना पाप है। किसी को दुःख देना पाप है। फिर भी पाप होता है। समता सिद्ध करने के लिए सबमें समता रखो। व्यक्तिगत ममता दूर करो। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना- श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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