राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि त्यागत् क्षान्तिरनन्तरम् त्याग से शांति मिलती है, लेकिन जानना है किस चीज के त्याग से शांति मिलती है। सत्य के त्याग से शांति नहीं मिलती है, किसी ने सत्य को त्याग दिया झूठ ही बोलते हैं, उसे शांति नहीं मिलेगी। किसी ने पवित्रता त्याग दिया, किसी ने नैतिकता को त्याग दिया, किसी ने आदर्श का त्याग किया, किसी ने लज्जा, शीलता और किसी ने मर्यादा का त्याग किया, इससे शांति नहीं मिलेगी। क्या त्यागें, क्या ग्रहण करें, ये भी जानने की जरूरत है। शास्त्रोचित त्याग करके हम अपने जीवन में शांति को ग्रहण कर सकते हैं। त्याग से शांति मिलती है। क्या त्यागना और क्या ग्रहण करना है यह बोध हमें सत्संग, शास्त्र और स्वाध्याय से मिलता है। शांति भगवान की अहलादनी शक्ति है। शांत की जो शक्ति है, उसी का नाम शांति है। शांत कौन है? शांत केवल भगवान हैं। इसलिए भगवान का ध्यान करते हैं तो कहते हैं, शांताकारं भुजग शयनं, देवता बनाने की कोई फैक्ट्री नहीं होती, ऐसे ही शुभकर्म, सत्कर्म करके मानव ही देवता बन जाता है और मानव ही कर्म पथ से च्युत्त होकर राक्षस बन जाता है, मानहिं मातु पिता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा। जिन्ह के यह आचरन भवानी। ते जानेहु निसिचर सब प्रानी। सर्वं विष्णुमयं जगत्। यज्ञो वै विष्णुः। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम) का पावन स्थल, चातुर्मास का पावन अवसर, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में श्री विष्णु महापुराण कथा के पंचम दिवस भक्त प्रहलाद जी की कथा का गान किया गया। कल की कथा में राजर्षि भरत की कथा का वर्णन किया जायेगा।