पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि जगत जननी पराम्बा की संतान बनकर उनकी शरण में रहना, उनको अपना मानकर उनके बनकर प्रार्थना करना है। मां हम तेरी संतान हैं। संत जन कहते हैं यदि बच्चा नाली में गिर जाय मां बहुत अच्छा वस्त्र पहन कर कहीं जा रही हो, मां अपने वस्त्र की ओर नहीं देखेगी, अपने बच्चे की ओर देखेगी, वह उसी समय नाली में से एकदम बच्चे को उठायेगी, बच्चे की गंदगी साफ करेगी, उसके स्वयं के वस्त्र खराब हो जाए, उसकी परवाह नहीं करती पर उसके बच्चे को कुछ न हो जाय, इसका ध्यान करती है। संत जन मां भगवती से प्रार्थना करते हैं माँ संसारी मां भी नाली में गिरे कीचड़ से सने बच्चे को दौड़कर उठाती है। उसकी गंदगी साफ करके, उसे गले लगाती है। साफ कपड़े पहनाती है। आप जगत माता हैं, हम संसार के कीचड़ में गिर रहे हैं, संसार की नदी में डूब रहे हैं, नाली में गिर रहे हैं, तुम्हारी करुणा कहां गई मां? मां हमें संभाल लो, हम जैसे भी हैं तुम्हारे हैं। जब हमारे हृदय में माता के प्रति यह भाव जाग जायेगा, हमारा जीवन धन्य-धन्य हो जायेगा। आप अनुभव करोगे कि आपके चारों ओर अंदर बाहर मां ही मां समाई हुई है। हमारे चारों ओर मां का पहरा है, एक संत कहा करते थे जब मैं चलता हूं तब मेरी एक और सिंह पर सवार भगवती दुर्गा चलती हैं दूसरी ओर मेरे नारायण चलते हैं, हनुमान जी चलते हैं और मुझे आने वाली घटनाओं का संकेत दे देते हैं। हम लोगों में यही संस्कार दृढ़ होना है। इससे जीवन में बहुत शांति, बहुत आनंद का अनुभव होगा। सभी को मां की आराधना जरूर करते रहना चाहिए। जो मां का चिंतन और भजन-पूजन करता है और मां की भक्ति करता है, वह भगवती का स्वरूप बन जाता है। उसके रोम-रोम में मां का निवास होता है। शक्ति दिखाई नहीं देती लेकिन शक्ति से ही सब कुछ हो रहा है। जैसे भूख से आप अपने में कमजोरी का अनुभव करते हैं और प्रसाद में शक्ति है लेकिन दिखाई नहीं देती, प्रसाद जैसे ही हम ग्रहण करते हैं अपने अंदर शक्ति का संचार होता जाता है। हर पदार्थ में शक्ति है और अति सूक्ष्म है जो आंखों से दिखाई नहीं देती। कहा भी गया है- “सूक्ष्मत्वात् तद् अविज्ञेयम्” सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।