राजस्थान/पुष्कर।परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि इतिहासपुराणं पञ्चमं वेदानां वेदम् इतिहास पुराण दोनों को ही पंचम वेद की गौरवपूर्ण उपाधि प्राप्त है। श्रीमद्बाल्मीकि रामायण और महाभारत जिनकी इतिहास संज्ञा है। महर्षि वाल्मीकि और वेद- व्यास के द्वारा प्रणीत और पुराणों की अपेक्षा अर्वाचीन है। सनातन धर्म में वेदों के बाद पुराणों का ही सबसे अधिक सम्मान है। कहीं- कहीं तो वेदों से भी अधिक गौरव दिया गया है। जो कोई व्यक्ति अंगों एवं उपनिषदों सहित चारों वेदों का ज्ञान रखता है, उससे भी बड़ा विद्वान वह है जो पुराणों का विशेष ज्ञाता है। वेदों की भांति पुराण भी अनादि माने गये हैं, उनके रचयिता भी परमात्मा ही है। श्रीपद्ममहापुराण में लिखा है कि पुराणों का विस्तार सौ करोड़ अर्थात एक अरब श्लोकों का माना गया है। समय के परिवर्तन से जब मनुष्य की आयु कम हो जाती है और इतने बड़े पुराणों का श्रवण और पठन एक जीवन में मनुष्यों के लिये असंभव हो जाता है। तब उनका संक्षेप करने के लिए स्वयं भगवान प्रत्येक द्वापर युग में व्यास रूप से अवतरित होते हैं और उन्हें अठ्ठारह भागों में बांट कर चारलाख श्लोकों में सीमित कर देते हैं।
पुराणों में पद्मपुराण का स्थान बहुत ऊंचा है। इसे श्रीभगवान के पुराणरूप विग्रह का हृदयस्थानीय माना गया है। हृदयं पद्मसंज्ञकम्।भक्तों का तो यह सर्वस्व ही है। इसमें भगवान विष्णु का महत्व विशेष रूप से वर्णित होने के कारण यह वैष्णवों को अधिक प्रिय है। परंतु पद्मपुराण के अनुसार सर्वोपरि देवता भगवान विष्णु होने पर भी उनका ब्रह्मा जी तथा भगवान शंकर के साथ अभेद प्रतिपादित हुआ है। उसके अनुसार स्वयं भगवान विष्णु ही ब्रह्मा होकर संसार की सृष्टि में प्रवृत्त होते हैं। तथा जब तक कल्प की स्थिति बनी रहती है तब तक वह भगवान विष्णु ही युग युग में अवतार धारण करके समूची सृष्टि की रक्षा करते हैं और कल्प का अंत होने पर वही अपना रूद्र रूप प्रकट करके सब कुछ अपने में लीन कर लेते हैं। ईश्वर के अनेक नाम हैं, अनेक रूप हैं, लेकिन ईश्वर एक है। ये बात हृदय में गहराई से बैठ जाय। तो हमारे इष्ट का दर्शन हमें हर जगह होगा और हमारी अनन्य भक्ति सिद्ध होगी। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम-वात्सल्यधाम) का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में चातुर्मास के पावन अवसर पर श्रीपद्ममहापुराण के द्वितीय दिवस की कथा में सूत जी की उत्पत्ति, व्यास जी की उत्पत्ति और इस संसार की उत्पत्ति का क्रम वर्णन किया गया। कल की कथा में पद्मपुराण के आगे के प्रसंगों का वर्णन होगा।