साधना करो, किन्तु साधना का अभिमान नहीं करो: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। कथा के अमृत बिंदु:- श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि साधक को खंडन-मंडन के प्रपंच में नहीं पड़ना चाहिए। अनादिकाल से मन को विषयों का चिंतन करने की आदत पड़ी है। वही मन श्री कृष्ण-कथा का चिंतन करें, कान श्री कृष्ण-कथा का श्रवण करे, तो विषय-चिंतन की आदत छूटेगी। इंद्रिय-रूपी गोपियों का प्रभु के साथ परिणय कराओ। साधक को जीवन के अंतिम श्वांस तक सावधान रहना चाहिए। साधक जब ध्यान आरंभ करता है, तब मन के चंचल होने से उसे ईश्वर दर्शन नहीं होते। जिस समय अंधेरा दिखाई देता है, उस समय निराश न होकर अभ्यास चालू रखोगे तो अंधेरा में से प्रकाश प्रस्फुटित होगा। साधक को कुसंग से बचना चाहिए। साधना करो, किन्तु साधना का अभिमान नहीं करो। साधना में लगा हुआ मनुष्य जब दीन होकर रुदन करने लगता है, तो भगवान् कृपा करते हैं। साधना की आदत ऐसी पड़ जाती है कि छूटती नहीं है। साधना से अनेक सिद्धियां मिलती हैं। भगवान भी मिलते हैं। साधना में लगे रहो। साधु की निंदा और साधु का अपमान सर्वनाश कर देता है। साधु ब्राह्मण सद्भाव से आते हैं। उनका अनादर मत करो, उन्हें शिरोधार्य करो। साध्य की प्राप्ति होने पर लोग प्रायः साधन की उपेक्षा करने लगते हैं। सायं काल प्रभु के नाम का जाप करो। सारे काम करने के बाद बचे हुए समय में जो भक्ति हो, वह मर्यादा- भक्ति कहलाती है। ईश्वर किसी भी रूप में आते हैं। तुम उनका सम्मान नहीं करोगे तो वे तुम्हें रुलायेंगे। ईश्वर किस रूप में घर आएंगे, यह नहीं कहा जा सकता। अतः उसी का सम्मान करो। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर (राजस्थान)।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *