चिंतन और कुसंग से ही होती है काम की उत्पत्ति: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। अष्टोत्तरशत् श्रीमद्भागवत
महापारायण एवं श्रीमद्भागवत कथा। कथा का समय दोपहर 12:00 बजे से 4:00 बजे तक। दिनांक- 8-1-2022 से 15-1-2022 तक। कथा स्थल-नवनिर्मित आश्रम गोवर्धन धाम कॉलोनी गोवर्धन जिला-मथुरा (उत्तर प्रदेश) मुख्य यजमान-श्री गोवर्धन भगवान्। कार्यक्रम के आयोजक एवं व्यवस्थापक-परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज। प्रथम दिवस श्रीमद्भागवत महात्म्य अन्तःकरण का परिवर्तन भगवत् स्मरण से होता है।
तब सभी क्रिया शास्त्रीय मर्यादा के अनुकूल स्वतः होने लगते हैं। भक्ति के मार्ग पर चलने के लिये भक्ति के उपरांत शक्ति की भी जरूरत पड़ती है और मनोबल की भी जरूरत है। प्रभु का मार्ग शूरवीरों का है। जो कायर हैं उनको भक्ति मार्ग पर चलने का सामर्थ्य ही नहीं होता। युवानी में जब आपके पास शक्ति भी है ऐसी स्थिति में इस शक्ति का सदुपयोग करने की सच्ची समझ यदि विकसित हो जाती है तो मनुष्य अपने निर्धारित लक्ष्य तक पहुंच ही जाता है। युवावस्था सीढ़ी चढ़कर किसी भी द्वार से, किसी भी दिशा में अध्यात्म के मंदिर में प्रवेश करना मुश्किल नहीं है। इसलिए सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाये तो अध्यात्म का पघ वास्तव में युवकों के लिये ही है। मनुष्य पाप तब करता है जब काम का विघात होता है, काम के विघात से क्रोध उत्पन्न होता है।
समस्त पाप काम पूर्वक होते हैं। किसी भी वस्तु की अभीप्सा काम है। काम का अर्थ केवल विषय ही नहीं है। वास्तव में विषय चिंतन व कुसंग से ही काम की उत्पत्ति होती है। किंतु मनुष्य की दृष्टि क्या है? संग भी उपासना हो सकता है और माला फेरना भी दम्भ हो सकता है। अतः अपना दृष्टि भाव बदलना होगा, यह सब व्यक्ति के ऊपर ही निर्भर करता है। स्मरण करते-करते आदमी पवित्र हो जाता है। आचरण व व्यवहार में पवित्रता आ जाती है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर
जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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