नई दिल्ली। आखिरकार भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में वही हुआ जिसकी पूरी संभावना थी। 13 जुलाई को इस्तीफा देने की घोषणा करने वाले राष्ट्रपति गोटावाया राजपक्षे बुधवार को भोर में श्रीलंका वायुसेना के विमान से अपने परिवार के साथ देश छोड़कर मालदीव चले गए। इसके बाद ही पूरे श्रीलंका में भारी हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। वहां हालात बेकाबू हो गया है। देश में आपातकाल लगाने की घोषणा कर दी गयी है और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को देश का कार्यवाहक राष्ट्रपति भी बना दिया गया है।
राष्ट्रपति के रूप में राजपक्षे की गिरफ्तारी में छूट प्राप्त है। गिरफ्तारी से बचने के लिए ही वह पद छोड़ने से पहले ही देश छोड़कर भाग गए, जबकि गोटाबाया ने बुधवार को ‘सत्ता के शान्तिपूर्ण हस्तान्तरण‘ का रास्ता साफ करने का वादा किया था लेकिन इससे पहले ही अपनी सुरक्षा की दृष्टि से उन्होंने देश से भागने का रास्ता अपनाया। श्रीलंका में यह भी अफवाह उड़ी कि गोटाबाया को भगाने में भारत ने सहयोग किया है जबकि कोलम्बो में भारतीय उच्चायुक्त ने स्पष्ट कर दिया है कि यह बात पूर्ण रूप से निराधार है।
इसमें भारत की कोई भूमिका नहीं है। श्रीलंका में अभूतपूर्व संकट उत्पन्न हो गया है। राष्ट्रीय टीवी का प्रसारण रोक दिया गया है। अमेरिकी दूतावास ने भी सेवाएं बंद कर दी हैं। कोलम्बो में कर्फ्यू लगा दिया गया है। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के भाई और पूर्व वित्तमंत्री वासिल राजपक्षे भी देश छोड़कर भागने वाले थे लेकिन उन्हें रोक दिया गया। श्रीलंका के इतिहास में यह दूसरा अवसर है जब कार्यकारी राष्ट्रपति पद कार्यकाल के बीच में ही खाली होने जा रहा है।
1993 में जब लिट्टे ने वहां तत्कालीन राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा की हत्या कर दी थी। उस समय डिंगीरी बंडारा विजेतुंगा को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया था। श्रीलंका के संविधान के प्रावधानों के तहत जब राष्ट्रपति का कार्यालय खाली हो जाता है तो प्रधान मंत्री को अन्तरिम राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेनी पड़ती है। रानिल विक्रमसिंघे के विरोध में भी जनता काफी उग्र है। ऐसी स्थिति में वहां सर्वदलीय अंतरिम सरकार बनाने की जरूरत है। श्रीलंका में शान्ति बहाली पहली प्राथमिकता होनी चाहिए जिससे कि स्थिति में सुधार हो सके।