नई दिल्ली। भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है और खेती के लिए यूरिया आवश्यक सामग्री है। किसान इसके ऊंचे दाम और अनुपलब्धता से परेशान रहते हैं। इसके मूल में सबसे बड़ा कारण यूरिया की चोरी और तस्करी है। देश में प्रति वर्ष छह हजार करोड़ की यूरिया की चोरी कर उसकी कालाबाजारी और तस्करी की जाती है। इससे देश के राजस्व का जहां नुकसान होता है, वहीं ऊंचे दामों पर लेने से किसानों की लागत भी बढ़ जाती है।
ऐसे में उर्वरक मंत्रालय ने यूरिया की चोरी रोकने के लिए जो राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया है, वह नि: सन्देह सराहनीय कदम है और इसके सकारात्मक परिणाम सामने भी आने लगे हैं। इससे यूरिया की उपलब्धता बढ़ी है। उर्वरक मंत्रालय के उड़नदस्तों ने पिछले दो महीने में सौ करोड़ की यूरिया जब्त की है। छापों से खुलासा हुआ है कि खेती में उपयोग आने वाली नीम कोटेड यूरिया का बड़े पैमाने पर जहां उद्योगों में इस्तेमाल किया जा रहा था वहीं पड़ोसी देशों में इसकी तस्करी कर भारी मुनाफा कमाया जाता रहा है।
उर्वरक मंत्रालय के सक्रिय होने से तस्करी में जहां कमी आयी है, वहीं उद्योगों ने आयात करने वाली कम्पनियों से यूरिया की खरीदारी शुरू कर दी है, लेकिन सरकार को हुए नुकसान की भरपाई के लिए कड़ा कदम उठाए जाने की जरूरत है। साथ ही उर्वरक मंत्रालय को अपने इस अभियान को सतत जारी रखना होगा। साथ ही निगरानी तंत्र को और मजबूत बनाना होगा जिससे किसानों को पूरा लाभ मिले।
देश की विभिन्न औद्योगिक इकाइयों में सालाना दस से 12 लाख टन यूरिया की खपत होती है, जबकि मुश्किल से दो लाख टन यूरिया ही इसके लिए आयात की जाती है। जिन इकाइयों में यूरिया की खपत होती है, वह खेती वाली नीमकोटेड यूरिया का ही उपयोग करने लगी हैं, क्योंकि खेती वाली यूरिया पर भारी सब्सिडी दी जाती है।