नई दिल्ली। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कद्दावर नेता गुलाम नबी आजाद जो पार्टी में लम्बे समय से उपेक्षित चल रहे थे, अन्ततः शुक्रवार को उन्होंने प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। विभिन्न चुनौतियों और संकट के दौर से गुजर रही अखिल भारतीय कांग्रेस के लिए यह बड़ा आघात है। हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ नेता आनन्द शर्मा के त्यागपत्र के बाद गुलाम नबी आजाद का पार्टी से त्यागपत्र संगठन की दृष्टि से यह बड़ी क्षति है।
गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के राष्ट्रीय स्तर के नेता रहे लेकिन उनकी रणनीतिक कर्मभूमि जम्मू-कश्मीर है। देश के चार प्रधान मंत्रियों के साथ सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। साथ ही राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका भी उन्होंने बखूबी निभाया था। गुलाम नबी का गांधी परिवार से निकट का सम्बन्ध रहा और कई दशकों तक वह कांग्रेस से जुड़े रहे।
सौम्य व्यक्तित्व और मृदुभाषी आजाद के प्रशंसक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी हैं। राज्यसभा में आजाद की विदाई के दिन प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी प्रशंसा में जो बातें कही, उससे यह संकेत मिलने लगा था कि भविष्य में वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो सकते हैं लेकिन आजाद ने इससे स्पष्टत: इनकार कर दिया।
विगत 22 मार्च 2022 को आजाद को पद्मभूषण अलंकरण से सम्मानित भी किया गया जिसको लेकर सियासत भी हुई। कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र देने के साथ ही आजाद ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के नाम पांच पृष्ठों का एक पत्र भी लिखा है, जिसमें उनकी व्यथा-कथा है। पत्र में ऐसे अनेक मुद्दे उठाए गए हैं, जिससे वह व्यथित थे। अब गुलाम नबी आजाद कांग्रेस से आजाद तो हो गए हैं लेकिन सक्रिय राजनीति से आजाद नहीं हुए हैं।
उन्होंने एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल बनाने का संकेत दिया है और निकट भविष्य में होने वाले जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनावों में उनकी पार्टी सक्रिय रूप से चुनाव भी लड़ेगी। आजाद की पार्टी से नेशनल कान्फ्रेंस और महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।