लखनऊ। जघन्य मामलों में न्याय की सार्थकता और महत्व तभी है जब अदालत कम से कम समय में फैसला सुनाए । उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में विशेष न्यायाधीश पाक्सो अधिनियम पंकज कुमार श्रीवास्तव ने नाबालिग से दुष्कर्म के मुकदमे में त्वरित न्याय देने की अनुकरणीय मिसाल पेश की है।
दरिन्दगी के इस मामले की सुनवाई मात्र 20 दिन में पूरा करते हुए 21 वें दिन आरोपित को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी। साथ ही 30 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया । दोषी को स्वाभाविक मौत होने तक जेल में रहना होगा। इस मुकदमे में विवेचक ने भी तेजी दिखाई थी जो स्वागतयोग्य है।
इस प्रकरण में सबसे महत्वपूर्ण पक्ष शीघ्र न्याय का है जो उचित और न्यायसंगत है। इससे जहां एक ओर पीड़ित परिवार को कुछ राहत मिली है वहीं दूसरी ओर अपराधी प्रवृत्ति के लोगों के बीच कड़ा सन्देश भी गया है। मुकदमों का निस्तारण त्वरित गति से हो यह जिम्मेदारी अदालतों की है।
इसके लिए न्यायपालिका को न्यायिक व्यवस्था में आधारभूत ढांचे की कमी को दूर करते हुए कड़े कदम उठाने की जरूरत है। मुकदमों को लम्बा खींचने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए सकारात्मक मानक बनाने की आवश्यकता है। विलम्बित न्याय से न्याय का कोई औचित्य नहीं रह जाता। न्याय में देरी निश्चित रूप से चिन्ता का विषय है।
इससे जहां पीड़ित परिवार को परोक्ष रूप से सजा मिलती है वहीं अदालतों में मुकदमों का बोझ भी बढ़ता है, जो किसी रूप में उचित नहीं है। अनावश्यक विलम्ब को रोकने के लिए बाध्यकारी आदेश पारित किया जाना चाहिए। प्रतापगढ़ में विशेष न्यायाधीश पाक्सो अधिनियम का त्वरित गति से सुनवाई और फैसला अन्य जजों को प्रेरणा देने वाला है। इस फैसले के खिलाफ अपील की जाती है तो सम्बन्धित न्यायालय से भी शीघ्र न्याय की अपेक्षा स्वाभाविक है।