PM Modi: एक देश, एक चुनाव को लेकर सरकार का बड़ा कदम, क्षेत्रीय दलों को हो सकता है नुकसान

 One nation one election: वन नेशन, वन इलेक्‍शन यानी एक देश, एक चुनाव को लेकर केंद्र सरकार ने एक कमेटी का गठन किया है। जिसका अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बनाया गया है। जिसका आज औपचारिक नोटिस भी जारी किया जा सकता है। हालांकि विपक्षी पार्टियों ने केंद्र सरकार के इस कदम पर सवाल उठाए हैं।

सरकार के लिए भी आसान नहीं
दरअसल, एक देश, एक चुनाव का मतलब देश में लोकसभा और राज्‍यों के विधान सभाओं का चुनाव एक साथ ही कराए जाए। जिसके लिए सरकार ने कमेटी का गठन कर दिया है, जो चुनाव के पहलुओं पर गौर करेंगी। साथ ही इस मुद्दें पर आम लोगों की राय भी लेगी। हालांकि सरकार के लिए भी इस फैसले को लागू करना और इस संबंध में कानून बनाना आसान नहीं होगा। दरअसल एक साथ चुनाव कराने के लिए कई विधानसभाओं के कार्यकाल में मनमाने ढंग से कटौती करनी पड़ेगी। जिसका विरोध होना तय है।

 

क्यों एक साथ चुनाव कराना चाहती है सरकार?
बता दें कि चुनाव कराने की वित्तीय लागत, बार-बार प्रशासनिक स्थिरता, सुरक्षा बलों की तैनाती में होने वाली परेशानी और राजनीतिक दलों की वित्तीय लागत को देखते हुए मौजूदा सरकार एक देश, एक चुनाव की योजना पर विचार कर रही है। इसके तहत सरकार लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराना चाहती है। साल 1951-52 में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए, लेकिन बाद में 1968, 1969 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने और 1970 में लोकसभा को समय से पहले भंग होने से यह साथ चुनाव कराने का चक्र बाधित हो गया। यही वजह है कि अब स्थिति ये हो गई है कि हर साल कहीं ना कहीं चुनाव हो रहे होते हैं। ऐसे में सरकार फिर से लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की संभावनाओं पर विचार कर रही है। अब इस दिशा में कमेटी का गठन एक बड़ा कदम है।

 

क्षेत्रीय दलों को हो सकता है नुकसान
वहीं, इस मामले में राजनीति जानकारों का कहना है कि एक देश, एक चुनाव अगर देश में लागू हो जाता है तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान क्षेत्रीय दलों को होगा। दरअसल लोकसभा चुनाव में आमतौर पर मतदाता राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर और राष्ट्रीय पार्टी को वोट देना पसंद करते हैं। ऐसे में अगर लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव होंगे तो हो सकता है कि क्षेत्रीय दलों को इसका नुकसान झेलना पड़े।

 

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