वैश्विक स्तर पर हिन्दी का महत्व…

लखनऊ। भारत की जानी-मानी हिन्दी लेखिका गीतांजलि श्री को उनके उपन्यास रेतकी समाधि को बुकर पुरस्कार मिलना हिन्दी साहित्य के लिए बहुत बड़ी गौरवमयी वैश्विक सम्मान है। गीतांजलि श्री देश की पहली हिन्दी उपन्यासकार हैं, जिन्हें अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के गोड़उर गांव की मूल निवासी और पश्चिम उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में जन्मी गीतांजलि श्री की इस उपलब्धि से उत्तर प्रदेश सहित पूरा देश गौरवान्वित है। टाम्ब आफ सैंड गीतांजलि श्री के हिन्दी उपन्यास रेतकी समाधि का अंग्रेजी में अनुवादित संस्करण है। इस उपन्यास में एक 80 वर्षीय बुजुर्ग महिला की पीड़ा को दर्शाया गया है, जो इस बात का मूल्यांकन करती है कि एक मां, बेटी, महिला और नारीवादी होने के क्या मायने हैं।

इससे पहले भारतीयों में अरुंधती राय, किरण देसाई और अरविन्द अडिगा सहित अनेक भारतवंशियों को मैन बुकर मिल चुका है, जिनकी मूल कृतियां अंग्रेजी में थी। यह पहला अवसर है, जब किसी हिन्दी कृति को अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। यह सिर्फ हिन्दी को ही नहीं, बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं को भी प्रोत्साहित करने के लिए गौरव का क्षण है। यह देश के साहित्यकारों का सम्मान है, जो नये रचनाकारों की प्रेरणा देने वाली है। लंदन में आयोजित एक समारोह में हिन्दी उपन्यास के लिए गीतांजलि श्री को बुकर पुरस्कार से नवाजा गया।

उन्होंने हिन्दी साहित्य को विश्व साहित्य के समकक्ष खड़ा कर दिया जो अब तक उपेक्षित ही रही। गीतांजलि की इस असाधारण उपलब्धि से यह उम्मींद बलवती हुई है कि वैश्विक स्तर पर अब हिन्दी को बहुत महत्व दिया जाएगा। गीतांजलि श्री को मिली हिन्दी साहित्य की ऐतिहासिक उपलब्धि भारतीय भाषाओं के लिए नयी सम्भावनाओं के दरवाजे खोल दी है। विश्व पटल पर हिन्दी की दमदार उपस्थिति दर्ज कराने के लिए गीतांजलि श्री साधुवाद की पात्र हैं।

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