भारत के प्राचीन ज्ञान, परंपरा और आधुनिक शिक्षा का हो मेल: दलाई लामा

हिमाचल प्रदेश। भारत में ज्ञान और शिक्षा की अपनी एक प्राचीन और गौरवशाली परंपरा रही है। इसको यदि आधुनिक शिक्षा पद्धति के साथ एक अकादमिक विषय के रूप में मिला दिया जाए, तो समूची मानवता के लिए यह एक प्रयोग कल्याणकारी साबित होगा। तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने बुधवार को अपने आवास से एक ऑनलाइन सत्र के दौरान यह बात कही। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश शासकों के आने के साथ ही भारत ने आधुनिक शिक्षा और अंग्रेजी के विकास के लिए बहुत ज्यादा ध्यान दिया है। इस दौरान संस्कृत भाषा में संग्रहित भारतीय ज्ञान परंपरा की बहुत बुरी तरह से उपेक्षा हुई है। अब समय आ गया है कि भारतीय विद्वानों, खासकर कुछ विश्वविद्यालयों को भारत की इस आधुनिक ज्ञान परंपरा और आधुनिक शिक्षा पद्धति के मेल के लिए प्रयास करने होंगे। अगर ऐसा कोई गंभीर प्रयास होता है, तो समूचे विश्व के लिए यह एक लाभकारी प्रयोग होगा। उन्होंने कहा कि मेरी यह खुद की भी इच्छा है कि इसके लिए कुछ विश्वविद्यालयों से संपर्क करूं। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया में दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। इसके बावजूद यहां बेहद शांति और सभी धर्मों में समरसता देखने को मिलती है। हजारों वर्ष पुरानी परंपरा में अहिंसा और करुणा जैसे मूल्य काफी गहरे तक रचे-बसे हैं। इस तरह के तमाम मूल्यों को अनंतकाल तक जीवंत बनाए रखने के लिए धार्मिक के बजाय अकादमिक विषय के रूप में भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा और आधुनिक शिक्षा पद्धति का मेल परम आवश्यक है।

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