धर्म। हिंदू पंचाग के मुताबिक इस वर्ष 18 फरवरी को महाशिवरात्रि पड़ रही है। भगवान शिव अपने शरीर पर धारण किए अहि, व्याल व भुंजग तन पर मली श्मशान की भस्म,गले में नरमुंडमाला और कमर में लपेटा व्याघ्र चर्म यह सब बाहरी रूप में तो अमंगल भेषभूषा है। ऐसा होते हुए भी कृपालु भगवान शिवजी मंगल के धाम हैं। अतः सभी देवताओं पर कृपा,पार्वतीजी का मंगल करने वाले और सभी प्राणियों का कल्याण करने वाले महादेव हैं। शास्त्रों के मुताबिक फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। देवी पार्वती पूर्वजन्म में शिव की पत्नी सती थी। एक बार नारद मुनि के कहने पर सती ने भगवान शिव के गले में पड़ी हुई मुंड माला का रहस्य पूछा था। पौराणिक मान्यताओं के जानते है क्या है इस मुंडमाला का रहस्य।
पौराणिक कथा :-
शिवमहापुराण के मुताबिक एक बार विष्णुजी बोले -हे शिव! आपके कंठ में पूर्व में उत्पन्न हो चुके ब्रह्माओं की अस्थियों की माला सुशोभित हो रही है। विष्णुजी के ये कहने पर राहु भी उन्हें प्रणाम करके उनके मस्तक में स्थित हो गया। तब चन्द्रमा ने भय के मारे अमृत का स्राव किया, उस अमृत के सम्पर्क से राहु के अनेक सिर हो गए। भगवान शंकर ने उन सबको देखा और देवकार्य की सिद्धि के लिए उन्होंने राहु के मुंडों की माला बना ली। शतरुद्रसंहिता में इस बात का उल्लेख है कि शिवजी ने नृसिंह के मुख को अपनी मुंडमाला का सुमेरु बनाया था।
पुराणों के मुताबिक यह मुंडमाला भगवान शिव और सती के अखंड प्रेम का प्रतीक है। देवर्षि नारद के कहने पर देवी सती ने शंकरजी से इसका रहस्य पूछा था। काफी समझाने पर सती नहीं मानी तो शिव ने उन्हें बताया कि इस मुंड माला में सभी सिर आपके ही हैं। शिवजी ने कहा कि यह आपका 108 वां जन्म है। पहले भी आप 107 बार जन्म लेकर शरीर त्याग चुकी हैं। ये मुंड उन्हीं जन्मों का प्रतीक हैं। मुंडमाला पहनने का रहस्य जानकर सती ने शिव से कहा कि मैं तो बार-बार शरीर का त्याग करती हूं लेकिन आप तो त्याग नहीं करते तब शिव ने उनसे कहा कि मुझे अमरकथा का ज्ञान है, इसलिए मुझे बार-बार शरीर का त्याग नहीं करना पड़ता है। सती ने भी शिव से अमरकथा सुनने की इच्छा प्रकट की। माना जाता है कि जब शिव सती को कथा सुना रहे थे तब सती पूरी कथा नहीं सुन पाईं और मध्य में ही सो गईं। फलस्वरूप उनको राजा दक्ष के यज्ञ में कूदकर आत्मदाह करना पड़ा।
मां पार्वती को हुई अमरत्व की प्राप्ति :-
सती के आत्मदाह के बाद शंकर भगवान ने उनके शरीर के अंशों से 51 पीठों का निर्माण किया, लेकिन शिव ने सती के मुंड को अपनी माला में गूंथ लिया। इस तरह 108 मुंड की माला शिव ने पूर्ण करके धारण कर ली। हालांकि बाद में, सती का अगला जन्म पार्वती के रूप में हुआ। इस जन्म में पार्वती को अमरत्व प्राप्त हुआ और फिर उन्हें शरीर का त्याग नहीं करना पड़ा।