अशुभ विचार मन में आने से रोकें

आध्यात्म। हमारा मन अभ्यास का दास है। अभ्यास से मन को किसी भी प्रकार से संतुष्ट किया जा सकता है। जिस मनुष्य को पढ़ने- लिखने का  अभ्यास रहता है, उसका मन रुचि के साथ ऐसे काम को करने लगता है। ऐसे व्यक्ति से बिना पढ़े- लिखे रहा ही नहीं जाता। जिस मनुष्य को दूसरों की निन्दा करने का अभ्यास है, जो दूसरों के अहित का सदा चिंतन किया करता है, वह भी उन कर्मों को किए बिना रह नहीं सकता ऐसे कार्य उसकी एक प्रकार की नशा जैसे व्यसन हो जाते हैं, वह व्यक्ति अनायास ही दूसरों की निन्दा और अकल्याण सोचने में लग जाता है।

यदि वह चाहे कि अमुक अशुभ विचार को हम छोड़ दें तो भी अब वह उसे छोड़ने में असमर्थ होता है। वही मनुष्य अपने विचारों पर नियंत्रण कर सकता है जिसकी आत्मा बलवान और विवेकी है। सबका सदा कल्याण सोचना, किसी का भी अहित न सोचना, बुरे विचारों के निराकरण का पहला उपाय है। जिस व्यक्ति के प्रति हम बुरे विचार लाते हैं उससे हम घृणा करने लगते हैं। घृणा की वृत्ति उलटकर भय की वृत्ति बन जाती है। जो दूसरों की मान हानि का इच्छुक है उसके मन में अपने आप ही अपनी मान हानि का भय उत्पन्न हो जाता है।

जो दूसरों की शारीरिक क्षति चाहता है, उसे अपने शरीर के विषय में अनेक रोगों की कल्पना अपने आप उठने लगती है। जो दूसरों की असफलता चाहता है वह अपनी  सफलता के विषय में संदेहात्मक हो जाता है। हमें यहां ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी भावना व्यक्ति विशेष से संबंधित नहीं रहती। हम किसी समय एक विशेष व्यक्ति से डर रहे हों, संभव है वह व्यक्ति हमारा कुछ बुरा न कर सके वह किसी कारण से हमसे दूर हो जाय।

किन्तु इस प्रकार व्यक्ति  विशेष से दूर हो जाने पर हम अपनी दुर्भावना से मुक्त नहीं होते। यह भावना अपना एक दूसरा विषय खोज लेगी। हमारे जीवन का सुख और दुःख हमारे विचारों पर ही निर्भर रहता है। आधुनिक मनोविज्ञान की खोजों से पता चलता है कि मनुष्य का न सिर्फ आंतरिक एवं समस्त जीवन के व्यवहार तथा शारीरिक स्वास्थ्य भी मन की कृष्ट तथा अकृष्ट गतियों का परिणाम मात्र है।

अशुभ विचारों को लाना ही अपने जीवन को दुखी बनाना है तथा शुभ विचारों को लाना सुखी बनाना है। अब प्रश्न यह आता है कि हम अशुभ विचारों को आने से कैसे रोकें जिससे कि उनसे पैदा किये दुखों से हम बच सकें। यह प्रश्न बड़े महत्व का है और संसार के समस्त मनस्वी लोगों ने इस प्रश्न पर गम्भीर विचार किया है। प्रत्येक मनुष्य को इस विषय पर विचार करना चाहिए।

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