एस्ट्रोलॉजी। पंचांग के मुताबिक, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुष्य नक्षत्र में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे हैं तो उस समय धरती से एक बच्ची प्राकट्य हुई। जिन्हें सीता नाम से जाना जाता है। इसी कारण हर साल इस दिन सीता नवमी या फिर जानकी जयंती के रूप में मनाया जाता है।
शुभ मुहूर्त- सीता नवमी का शुभ मुहूर्त नवमी तिथि 9 मई शाम 6 बजकर 32 मिनट पर से प्रारंभ होकर नवमी तिथि समाप्त 10 मई को शाम 7 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। उदया तिथि 10 मई होने के कारण मंगलवार को सीता नवमी मनाई जाएगी।
पूजन विधि- इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर लें। इसके बाद साफ कपड़े धारण कर पूजा घर या फिर साफ जगह पर एक लकड़ी की चौकी रखकर लाल या फिर पीले रंग का कपड़ा बिछा दें और इसमें माता सीता-रात की मूर्ति या फिर राम दरबार की तस्वीर विराजित कर दें। इसके बाद पूजन शुरू करें। सबसे पहले लाल या पीले रंग के फूल के माध्यम से जल अर्पित करें। फिर फूल और माला चढ़ाएं। माता सीता को सिंदूर और भगवान राम को चंदन लगा दें। इसके बाद अपने अनुसार भोग लगाकर घी का दीपक और धूप जलाएं। अब मां सीता का स्मरण करते हुए ‘श्री सीतायै नम:’ और ‘श्री सीता-रामाय नम:’ मंत्र का जाप करें। अंत में विधिवत तरीके से आरती करते हुए भूल-चूक के लिए माफी मांग लें।
सीता नवमी का महत्व- मान्यता है कि सीता नवमी के दिन सुहागन महिलाओं को यह व्रत और पूजा जरूर करनी चाहिए। वहीं जो कुंवारी कन्या व्रत रखती हैं उन्हें मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती हैं। माता सीता को मां लक्ष्मी का ही स्वरूप माना जाता है।