आतंकियाें को डराता यह फैसला

लखनऊ। सात मार्च 2006 की सुबह सिलसिलेवार बम धमाकों से वाराणसी को हिला देने वाली घटना का न्यायालय से सोमवार को फैसला आ गया। इस आतंकी घटना में मुख्य भूमिका निभाने वाले वलीउल्लाह उर्फ टुण्डा को गाजियाबाद के जिला एवं सत्र न्यायाधीश जितेन्द्र कुमार सिन्हा ने फांसी की सजा सुनाई।

एक अन्य मामले में उम्रकैद की भी सजा सुनायी गई है। लगभग 16 वर्षों के लम्बे अन्तराल के बाद इस बहुचर्चित वाराणसी सिलसिलेवार बम धमाके के पीड़ितों को न्याय मिला है। इस प्रकरण में लम्बे समय तक अदालती प्रक्रिया चली और कुल 77 गवाहों ने गवाही दी। न्यायालय ने जो सजा सुनायी है वह पूरी तरह से न्यायसंगत है जिससे पीड़ीतों का कलेजा ठंडा हुआ है।

गाजियाबाद की जिला न्यायालय ने आतंकी वलीउल्लाह को चार मुकदमे में दोषी करार किया था, जो इस समय डासना जेल में बन्द हैं। उस पर छह मामले चल रहे थे। वलीउल्लाह को आईपीसी की विभिन्न धाराओं के अतिरिक्त विस्फोटक अधिनियम के तहत भी दोषी करार किया गया है।

सात मार्च 2006 को सायंकाल विश्वविख्यात संकट मोचन मन्दिर परिसर और कैण्ट रेलवे स्टेशन पर सिलसिलेवार बम धमाके के साथ ही दशाश्वमेध घाट पर प्रेशर कूकर में भी विस्फोटक बरामद हुए थे। प्रयागराज के फूलपुर के निवासी वलीउल्लाह को अप्रैल 2006 में लखनऊ से गिरफ्तार किया गया था।

इस आतंकी घटना में 18 लोगों की मृत्यु हुई और 35 से अधिक लोग घायल हुए थे । इस घटना से पूरे क्षेत्र में दहशत और भय का माहौल उत्पन्न हो गया था। वाराणसी के इतिहास में यह अपने ढंग की अलग घटना थी। इस घटना के एक अन्य आरोपी जुबेर को कश्मीर में मुठभेड़ में मारा गया था जबकि कुछ अन्य संदिग्धों जकारिया,

मुसिफिज और वजीर का आज तक पता नहीं चल पाया। इन आतंकियों ने सुनियोजित ढंग से घटना को अंजाम दिया और गुप्तचर तंत्र को इसकी भनक नहीं लग पायी । इस हृदयविदारक घटना के बाद से ही संकटमोचन मन्दिर परिसर में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गयी। अपराध के स्वरूप को देखते हुए यह न्यूनतम सजा है लेकिन यह सजा आतंकियों को भी कड़ा संदेश है।

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