पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, दुःख क्या है ? भगवान् श्री कृष्ण श्रीमद्भागवत महापुराण के ग्यारहवें स्कन्ध में उद्धव जी से कहते हैं कि- ‘ दुःखं काम सुखापेक्षा।’ काम सुख की अपेक्षा या इच्छा ही दुःख है। यहां काम शब्द का अर्थ सांसारिक कामना से है। हम अनेकानेक कामना करते रहते हैं कि संसार में यह प्राप्त हो जाये अथवा वह प्राप्त हो जाये। संसार के किसी वस्तु की प्राप्ति से सुख की अपेक्षा करते हैं, यही दुःख का मूल है। हमारे-आपके मन में सुख की इच्छा है, सुख की इच्छा समाप्त दुःख समाप्त। चाह गई चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह। जिनको कछु न चाहिये वो शाहन के शाह।। चाह चमारी चूहरी सौ नीचों से नीच, तू तो पूरण ब्रह्म था चाह न होती बीच।। आज का व्यक्ति अपने दुःख से दुःखी नहीं है,अपितु दूसरे के सुख से दुःखी है। इसमें षट विकारों में मत्सर दोष कारण है। मात्सर्य दोष से बचने के लिए विवेक आवश्यक है और विवेक की प्राप्ति सत्संग से होती है। अतः सारे दुखों का कारण सत्संग की कमी है। अतः काम, कामना, इच्छा पर विजय पायें। जब कामना पूरी नहीं होती तो लोभ, क्रोध होता है और क्रोध से बुद्धि भ्रमित होकर हानि होती है। सुख-दुःख में सम रहें। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)