संयम, सदाचार और उत्तम संस्कारों से मिलती है शांति: दिव्य मोरारी बापू

पुष्‍कर/राजस्थान। कल की कथा में केवट प्रसंग, भरत चरित, नवधा भक्ति की कथा का गान किया जायेगा। वक्ता-राष्ट्रीय संत श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू। संयम और सदाचार को धीरे-धीरे बढ़ाते जाओ। संयम धीरे-धीरे बढ़ाने से भक्ति बढ़ती है। जिसे एक बार त्याग दिया, पुनः इन्द्रियों को उस विषय में आसक्त (प्रवृत्त) नहीं होने दो। संयम, सदाचार एवं उत्तम संस्कारों से शांति मिलती है। सम्पत्ति से शांति नहीं मिलती। संपत्ति से विकार और सांसारिक कामनायें बढ़ती हैं। संयम सदाचार, स्नेह, एवं सेवा- सत्संग के बिना ये गुण नहीं आते। संयोग में चक्षु-दर्शन, वियोग में मानस-दर्शन। संयोग में दोष-दर्शन एवं वियोग में गुण-दर्शन। यही जीव का स्वभाव है। संसार ऐसा है कि आंखें बंद करने पर भी दिखाई देता है। मन में स्थित संसार विघ्नकारक है। संसार की मोहिनी का मोह, सौंदर्य का मोह, विषयों का मोह छोड़ो, जैसे-जैसे परमात्मा में प्रेम बढ़ेगा, वैसे-वैसे विषयों से आसक्ती घटने लगेगी। संसार के किसी पदार्थ से इतना स्नेह मत करो कि वह (स्नेह) प्रभु-भक्ति में विघ्न करे। संसार के किसी भी जीव से विरोध मत रखो। जगत् के पदार्थों के भोगने की वासना का त्याग करो। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।

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