Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि दुःख का मूल कारण है अज्ञान, असंतोष, आसक्ति-प्रत्येक प्राणी दुःख के भंवरजाल में उलझा हुआ है. आज करोड़पति धन की सुरक्षा के लिये चिन्तित है तो रंकपति धन के अभाव से दुःखी है.विवाहित व्यक्ति अपनी कलहकारिणी पत्नी व परिवार से दुःखी है तो कोई विवाह न होने के कारण से परेशान है. निःसंतान अभिभावक अपनी सूनी गोंद के कारण दुःखी हैं तो बेटे वाला बाप अपनी उच्छृंखल संतान से परेशान है.
इसलिये दुःख व सुख न तो अभाव में है और न ही अतिभाव में.दुःख का मूल कारण है अपना अज्ञान, अपना असंतोष व अपनी आसक्ति.
मनुष्य शरीर बढ़िया नहीं है, अपितु उसका सदुपयोग बढ़िया है. धन बढ़िया नहीं है, उसका सदुपयोग बढ़िया है. बाहर से देखें तो दरिद्री और त्यागी सन्त दोनों समान है, दोनों के पास धन आदि पदार्थ नहीं है. परन्तु दरिद्री दुःख पाता है और त्यागी सुख. बड़े-बड़े राजा लोग भी त्यागी के पास जाते हैं, दरिद्री के पास नहीं. धनवान व्यक्ति भी सुख शांति के लिये त्यागी संतों के पास जाते हैं. सुख शांति पाने के लिये हम सब साधु सन्तों के पास जाते हैं. और वहां हमें शांति मिलती भी है, क्योंकि उनके पास है ज्ञान, संतोष और अनाशक्ति. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).