पहली बार भारत में कंप्यूटर से कहां कटा था रेल टिकट, बदल गया टिकट का रूप

नई दिल्लीआज के बदलते हुए समय में जंहा सब कुछ बदलतर हुआ नजर आ रहा है वहीं भारतीय रेलवे का भी बदलता हुआ रूप दिखाई दे रहा है। भारतीय रेलवे का सफर लगभग 170 वर्ष का हो चुका है। इस बीच बदलती तकनीक और उन्नत प्रोद्योगिकी के साथ रेलवे में भी कई बदलाव देखे गए। जिसमें ट्रेन में टॉयलेट्स बनाए जाने और स्लीपर कोच लगाए जाने से लेकर अब उनकी गति बढ़ाए जाने तक का सफर शामिल है। इसी बीच आज से लगभग 37 वर्ष पहले रेलवे ने टिकट काटने के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव कर दिया। इसके बाद टिकट खिड़की पर लगने वाली लंबी-लंबी लाइनें अब छोटी होने लगी है। तथा लोगों को आसान तरीके और तेजी से ट्रेन टिकट मिलने लगी। टिकट प्रणाली में यह बदलाव 1986 में हुआ।

सन्‍ 1985 में कंप्यूटर से टिकट काटने का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। 1986 में इसे पूरी तरह लागू कर दिया गया और उस साल पहली कंप्यूटरीकृत टिकट यात्री को दी गई। इसकी शुरुआत नई दिल्ली  के रेलवे स्टेशन से की गई थी। आज भारतीय रेलवे का पैसेंजर रिजर्वेशन सिस्टम (PRS) दुनिया का सबसे बड़ा पैसेंजर रिजर्वेशन नेटवर्क है। करीब 2022 जगहों पर 8074 खिड़कियों से आप रेलवे की टिकट बुक कर सकते हैं। जबकि, अब इसमें भी तेजी से बदलाव आ रही है और लोग ऑनलाइन टिकट बुकिंग की ओर अग्रसर हो रहे हैं।

पहले कैसे की जाती थी बुंकिग

पहले ये सारा काम मैनुअल तरीके से किया जाता  था। टिकट काउंटर पर बैठा रेल कर्मचारी शीट पर ट्रेनों में मौजूद खाली सीट की संख्या देखता था और फिर उसके हिसाब से टिकट बुक करता था। इसमें बहुत ज्यादा समय लगता था। टिकट बुक करने के लिए लंबी लाइनें लगानी पडती थीं और तब यह तय नहीं होता था कि आपको कंफर्म टिकट मिल ही जाएगा। तब टिकट कार्डबोर्ड जैसे पेपर के छोटे-छोट टुकड़ों पर काटे जाते थे। जबकि, तब भी राजधानी एक्सप्रेस की टिकट लगभग आज की टिकट जैसे ही होती थी।

घर पर डिलीवर की जाती थी टिकट
स्टेशन पर खिड़की से कंप्यूटरीकृत टिकट दिए जाने के प्रयोग की सफलता के लगभग 2 दशक बाद भारतीय रेलवे ने आई-टिकट (I-Ticket) की सुविधा शुरू की थी।  IRCTC की वेबसाइट के माध्यम से 2002 में आई-टिकट की बुकिंग शुरू की गई। जिसमें यात्री वेबसाइट पर टिकट बुक करते और फिर आईआरसीटीसी वह टिकट कुरियर के माध्यम से उन्हें घर तक भेजता था। हालांकि, कुछ ही साल बाद 2005 में ई-टिकट की बुकिंग शुरू कर दी गई और हमे आज का रिजर्वेशन सिस्टम हो गया है।

आई-टिकट और ई-टिकट में अंतर
आई-टिकट में फिजिकल टिकट यानी कि जो टिकट काउंटर से आपको मिलती है उसे ही घर तक पहुंचाया जाता था।  लेकिन  ई-टिकट में काउंटर वाली टिकट की अनिवार्यता को ही खत्म कर दिया गया। अब आप आईआरसीटीसी की वेबसाइट से टिकट बुक करने के बाद उसका प्रिंट आउट निकालकर भी ट्रेन में यात्रा कर सकते थे। तथा  किसी गड़बड़ी के कारण अगर ई-टिकट का सीट नंबर किसी ऐसे यात्री के सीट नंबर से क्लैश करता है जिसके पास फिजिकल टिकट है तो वह सीट उसे अलॉट कर दी जाती है।

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